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________________ इणः इणः - III. iii. 38 (परिपूर्वक) इण् धातु से (क्रम या परिपाटी गम्यमान होने पर कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है) । ... इणः - III. iii. 99 देखें - समजनिषद० III. iii. 99 इण: - VI. iv. 81 इण् अङ्ग को (यणादेश होता है, अच् परे रहते ) । इण: - VII. iv. 69 • इण् अङ्ग के (अभ्यास को कित् लिट् परे रहते दीर्घ होता है। इण: - VII. iii. 39 इण से उत्तर (विसर्जनीय को षकारादेश होता है; अपदादि कवर्ग, पवर्ग के परे रहते ) । इणः - VIII. iii. 78 इण् प्रत्याह्यर अन्त वाले अङ्ग से उत्तर ( षीध्वम्, लुङ् तथा लिट् के धकार को मूर्धन्य आदेश होता है) । .... इणोः - III. iii. 37 देखें - नीणोः III. iii. 37 इण्को: - VIII. iii. 57 (यहां से आगे पाद की समाप्ति पर्यन्त कहे कार्य) इण् एवं कवर्ग से उत्तर (होते है, ऐसा अधिकार जानें ) । इन जिसर्तिभ्य: - III. ii. 163 इण, णश, जि, सृ- इन धातुओं से ( तच्छीलादि कर्त्ता हों तो वर्तमानकाल में क्वरप् प्रत्यय होता है) । इत् - I. ii. 16 (स्था और घुसंज्ञक धातुओं से परे सिच् कित्वत् होता है और उनको इकारादेश (भी) हो जाता है। इत् - I.. ii. 50 (तद्धित के लुक् हो जाने पर गोणी शब्द को) इकारादेश हो जाता है। इत् - I. iii. 2 ( उपदेश में वर्तमान अनुनासिक अच् ) इत्सञ्ज्ञक होता है। .... इत्... - IV. 1. 169 देखें - वृद्धेत्कोसo IV. 1. 169 99 इत् इत् - IV. 1. 24 (देवतावाची 'क' प्रतिपदिक से षष्ठयर्थ में अण् प्रत्यय होता है तथा प्रत्यय के साथ उस 'क' को) इकारान्तादेश (भी) होता है। इत् - Viv. 135 (उत्, पूति, सु तथा सुरभि शब्दों से उत्तर गन्ध शब्द को बहुव्रीहि समास में समासान्त) इकारादेश होता है । इत् - VI. iii. 27 (देवताद्वन्द्व में वृद्धि किया गया शब्द उत्तरपद रहते अग्नि शब्द को) इकारादेश होता है। इत् - VI. iv. 34 (शास् अङ्ग की उपधा को) इकारादेश हो जाता है; (अङ् तथा हलादि कित, ङित् प्रत्यय परे रहते ) । इत् - VI. iv. 90 ('मेङ् प्रणिदाने' अङ्ग को विकल्प करके) इकारादेश होता है, ( ल्यप् परे रहते) । इत् - VI. iv. 114 (दरिद्रा धातु के आकार के स्थान में) इकारादेश होता है; (हलादि कित्, ङित् सार्वधातुक परे रहते ) । इत् - VII. 1. 100 (ऋकारान्त धातु अङ्ग को) इकारादेश होता है। इत् - VII. iii. 44 ( प्रत्यय में स्थित ककार से पूर्व अकार के स्थान में) इकारादेश होता है; (आप् परे रहते, यदि वह आप सुप् से | उत्तर न हो तो) । इत्... - VII. iii. 117 देखें - इदुद्भ्याम् VII. iii. 117. इत् - VII. iv. 5. (ष्ठा अङ्ग की उपधा को चङ्परक णि परे रहते) इकारादेश होता है। इत् -VII. iv. 40 (दो, षो, मा तथा स्था अङ्गों को तकारादि कित् प्रत्यय के परे रहते) इकारादेश होता है। इत् - VII. 1. 56 (दम्भ अङ्ग के अच् के स्थान में) इकारादेश होता है, (तथा चकार से ईकारादेश भी होता है) ।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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