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________________ आपनैः आम ...आपन्नैः ... -II.1.23 ...आबाथ... - VI. II. 21 देखें-श्रितातीतपतित II.1.23 देखें- आशङ्काबाधo VI. II. 21 ...आपात्या: -III. iv. 68 आबाधे - VIII. 1. 10 देखें-भव्यगेय III. iv.68 पीड़ा अर्थ में वर्तमान (शब्द को द्वित्व होता है तथा आपि - VII. ii. 112 उस शब्द को बहुव्रीहि के समान कार्य भी हो जाता है)। (ककार से रहित इदम् शब्द के इद् भाग को अन् आदेश ...आण्य: - VI. 1.66 होता है),आप अर्थात् टा से लेकर सुप (सप्तमी बहुवचन) देखें-हल्ल्यान्यः VI.1.66 तक किसी विभक्ति के परे रहते। आभात् -VI. iv. 22 आपि-VII. iii. 44 'भस्य' के अधिकारपर्यन्त (समानाश्रय अर्थात एक ही (प्रत्यय में स्थित ककार से पूर्व अकार के स्थान में निमित्त होने पर आभीय कार्य सिद्ध के समान नहीं होता)। इकारादेश होता है); आप् अर्थात् टापु,डाप् या चाप परे आभिमुख्ये-II.1. 13 रहते,(यदि वह आप सुप् से उत्तर न हो तो)। आभिमुख्य अर्थ में वर्तमान (अभि और प्रति का चिन्हाआपिशले: - Vi. i. 89 र्थक सुबन्त के साथ विकल्प से अव्ययीभाव समास होता आपिशलि आचार्य के मत में (सुबन्त अवयव वाले है)। ऋकारादि धातु के परे रहते अवर्णान्त उपसर्ग से उत्तर पूर्व ...आभीक्ष्ण्ययोः - VIII. 1. 27 पर के स्थान में संहिता-विषय में विकल्प से वृद्धि एकादेश देखें-कुत्सनाभीक्ष्ण्ययोः VIII. 1. 27. होता है)। आभीक्ष्ण्ये -III. II. 81 ...आपृच्छच..-III. 1. 123 देखें - निष्टयदेवहूय० III. 1. 123 आभीक्ष्ण्य = पुनः पुनः होना अर्थ गम्यमान हो तो (धातु से बहुल करके णिनि प्रत्यय होता है)। . 'आपो-VI. 1. 114 'आपो' - यह पद (यजुर्वेद में पठित होने पर अकार आभीक्ष्ण्ये -III. iv. 22 परे रहते प्रकृतिभाव से रहता है)।.. पौनः पुन्य अर्थ में (समानकर्तृक दो धातुओं में जो आजप्यधाम् - VII. iv.55 पूर्वकालिक धातु,उससे णमुल प्रत्यय होता है),चकार से क्त्वा प्रत्यय भी होता है)। आप,ज्ञपि तथा ऋध् अङ्गों के (अच् के स्थान में इकारादेश होता है, सकारादि सन् प्रत्यय परे रहते)। आम् -III. 1.35 (कास् धातु और प्रत्ययान्त धातुओं से लिट् परे रहते आप्रपदम् -V.ii. 8 अमन्त्र विषय में) आम् प्रत्यय होता है। (द्वितीयासमर्थ) आप्रपद प्रातिपदिक से (प्राप्त होता है' आम्-III. iv.90 अर्थ में ख प्रत्यय होता है)। .(लोट् सम्बन्धी जो एकार, उसको) आम आदेश होता ...आप्लाव्य.. -III. iv. 68 देखें- भव्यगेय III. iv. 68 ...आम्... -IV. 1.2 आप्सुपः-II. iv.82 देखें- स्वौजसमौट IV.1.2 (अव्यय से उत्तर) आपटाप.डाप.चाप्स्त्री प्रत्यय तथा आम... -VI. iv. 55 सुप्का (लुक हो जाता है)। देखें- आमन्ता VI. iv. 55 आपः - VII. iii. 113 आम् -VII. 1.98 आबन्त अङ्ग से उत्तर (डित् प्रत्यय को याट् आगम होता (चतुर तथा अनडुह अङ्गों को सर्वनामस्थान-विभक्ति परे रहते) आम् आगम होता है (और वह उदात्त होता है)। आवर्हि -IV.iy.88 आम् -VII. iii. 116 आबर्हि = उत्पादनीय समानाधिकरण (प्रथमासमर्थ मूल (नदीसजक आबन्त तथा नी से उत्तर ङि विभक्ति के प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में यत् प्रत्यय होता है)। स्थान में) आम् आदेश होता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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