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२२९. उत्तराध्ययन सूत्र टीका मकरन्दोद्धार, धर्ममन्दिर वा. / दयाकुशल, आगम, संस्कृत,
१७५०, अ., ह. ज्ञान भं., लीबंडी २३०. उत्तराध्ययन सूत्र टीका दीपिका, लक्ष्मीवल्लभोपाध्याय / लक्ष्मीकीर्त्ति उ०, आगम,
संस्कृत, १८वीं, आदि-अर्हन्तो ज्ञानभाजः सुरनरमहिता..., अन्त–गच्छे स्वच्छतरे बृहत्खरतरे...',
मु., हीरालाल हंसराज, जामनगर २३१. उत्तराध्ययन सूत्र टीका, हर्षनन्दन वादी / समयसुन्दर उ०, आगम, संस्कृत, १७११ बीकानेर,
अ., ह. बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा १५७७ २३२. उत्तराध्ययन सूत्र बालावबोध, अभयसुन्दरगणि / समयराज उ०, आगम, संस्कृत, १७वीं,
अ., ह. सेठिया लाइब्रेरी, बीकानेर २३३. उत्तराध्ययन सूत्र बालावबोध, कमललाभोपाध्याय / अभयसुन्दर उ०, आगम, राजस्थानी,
१६७४-१६९९ के मध्य, 'आदि-पणमिय सिरि पहु पासं..., अन्त-समयराजोपाध्यायान्तेवासी
वाचनाचार्य श्री अभयसुंदरगणि विनेय श्री कमललाभोपाध्याय विरचित...', अ., ह. विनय. प्रतिलिपि २३४. उत्सूत्रपदोद्घाटनकुलक, जिनदत्तसूरि / जिनवल्लभसूरि, विधि, प्राकृत, १२वीं, मु., जिनदत्तसूरि
चरित्र उत्तरार्द्ध, जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., सूरत २३५. उत्सूत्रपदोद्घाटनकुलक (कुमतिमत ) खण्डन, गुणविनयोपाध्याय / जयसोम उ०,
चर्चा, प्राकृत, १६६५ नवानगर, मूलाआदि–पणमिय वीरजिणंद..., अन्त-एवं चामुंडियमय...,
मु., जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., सूरत २३६. उत्सूत्रपदोद्घाटनकुलक (कुमतिमत) खण्डन, गुणविनयोपाध्याय / जयसोम उ०,
चर्चा, संस्कृत, १६६५ नवानगर, आदि-प्रणम्य रम्यशर्माणो..., अन्त-विक्र मतः
शररसरसशशिवर्षे ... गा. १२५०, मु., जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., सूरत २३७. उदयस्वामित्व यन्त्र, सुमतिवर्द्धनगणि / विनीतसुन्दरगणि, प्रकरण, राजस्थानी, १९वीं, अ.,
ह. कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा १४०३, विनय. प्रतिलिपि २३८. उदयविलास, जिनोदयसूरि / जिनसुन्दरसूरि बेगड़, रास चौपई, राजस्थानी, १८वीं, अ., ह.
जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर २३९ उदयस्वामित्व पञ्चाशिका, देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, प्रकरण, प्राकृत, १८वीं,
'आदि-वंदित्तु वद्धमाणं..., अन्त–सिरि राजसारपाढग.... गा. ५०', अ., ह. खरतरगच्छ ज्ञान
भं., जयपुर, विनय. प्रतिलिपि २४०. उद्गच्छत्सूर्यबिम्बाष्टक, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, काव्य, संस्कृत, १७वीं,
'आदि-चतुर्यामेषु शीता यामिनी..., अन्त-रवेः प्रकाशं बिब...', मु., समयसुन्दर कृति
कुसुमाञ्जिलि, पृ. ४९६ २४१. उद्यम कर्म संवाद, कुशलधीरगणि / कल्याणलाभ उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६९९
किसनगढ़, अन्त–संवत सोल निन्याणवै किसनगढे सुखकार...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर
खरतरगच्छ साहित्य कोश
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