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________________ महिमाभक्ति भण्डार, दानसागर भण्डार, वर्द्धमान भण्डार, अभयसिंह भण्डार, जिनहर्षसूरि भण्डार, अबीरजी भण्डार, भुवनभक्ति भण्डार, रामचन्द्र भण्डार और महरचन्द भण्डार । यति विष्णुदयालजी संग्रह, फतेहपुर, खरतरगच्छ ज्ञान भण्डार उज्जैन, खरतरगच्छ ज्ञान भण्डार, कोटा, जिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञान भण्डार, इन्दौर, जिनहरिसागरसूरि ज्ञान भण्डार, पालीताणा, खरतरगच्छ ज्ञान भण्डार, माण्डवी, खरतरगच्छ ज्ञान भण्डार, भुज, खरतरगच्छ ज्ञान भण्डार, अञ्जार, जिनदत्तसूरि ज्ञान भण्डार, बम्बई, जिनदत्तसूरि ज्ञान भण्डार, सूरत आदि। उक्त भण्डारों में से थाहरुशाह ज्ञान भण्डार, आचार्यशाखा ज्ञान भण्डार और बेगड़ गच्छ ज्ञान भण्डार- ये तीनों ही जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार, जेसलमेर में संग्रहित कर दिये गये है। यति वृद्धिचन्दजी का संग्रह मुनिराज श्री पुण्यविजयजी को समर्पित कर दिया था अतः वह भण्डार हेमचन्द्रसूरि ज्ञान भण्डार, पाटण में सुरक्षित है। श्रीपूज्य जिनचारित्रसूरि संग्रह, उपाध्याय श्री जयचन्दजी संग्रह, महोपाध्याय श्री समीरमलजी संग्रह, श्रीमोतीचन्दजी खजांची संग्रह ये भण्डार राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, बीकानेर शाखा को भेंट स्वरूप प्रदान कर दिये गये। इन ज्ञान भण्डारों मे से कई भण्डार विलुप्त हो चुके हैं। कई भण्डार अर्थ लोलुपियों के कारण कबाड़ियों के हाथों मे चले गये हैं। हमारी भाषा, लिपि और साहित्य के प्रति अज्ञता के कारण जलशरण किये जा चुके हैं और हमारी मूर्खता के कारण कई बण्डल जला भी दिये हैं। कार्तिक शुक्ला ज्ञान पंचमी का महत्त्व इन ग्रन्थों को धूप-दीप देने मात्र का रह गया है। ग्रन्थों के सजावट के साथ खिलौनों की सजावट हमारी मानसिकता की द्योतक है। हमारे लिए यह आवश्यक है कि जो कुछ भी सुरक्षित रह गया है ज्ञान पूर्वक, श्रद्धा पूर्वक, संजोकर के रखें तभी उन पूर्वाचार्यों की मनोकामना सफल होगी। मन्दिर-निर्माण अध्यात्मयोगी श्री देवचन्दजी ने इस कलियुग में भव्यजनों के उद्धार के लिए आगम के साथ जिनपडिमा सुखकंदो रे कहकर जिनप्रतिमा को आधारभूत माना है। भक्ति एवं श्रद्धा का केन्द्र जिनप्रतिमा ही है। हमारी गफलत से आततायियों द्वारा मंदिरों एवं प्राचीन कला-संस्कृति का जो ध्वंस किया गया था उस कला-संस्कृति को पुनरुज्जीवित करने के लिए खरतरगच्छ के आचार्यों ने सैकड़ों नव-मंदिरों का निर्माण करवाया, जीर्णोद्धार करवाये और एक साथ सैकड़ों नहीं, हजारों जिन-मूर्तियों की प्रतिष्ठा भी करवाई। दादा जिनकुशलसूरि ने शत्रुञ्जय मानतुंग विहार की प्रतिष्ठा के समय ५०० से अधिक मूर्तियों की और जिनभद्रसूरि आदि ने जेसलमेर प्रतिष्ठा के समय हजारों जिनमूर्तियों की एक साथ प्रतिष्ठा करवाई थी। जिनवर्द्धनसूरि द्वारा जेसलमेर, करेड़ा और देलवाड़ा के मन्दिर, कीर्तिरत्नसूरि स्थापित नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठत बीकानेर, अहमदाबाद, पाटण आदि, और जिनराजसूरि द्वितीय द्वारा स्थापित चौमुख जी की ट्रॅक, शत्रुञ्जय, लौद्रवा और मेड़ता आदि XXVI प्राक्कथन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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