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________________ विवाहलो, रास, गीत आदि में आँखो देखा वर्णन ही वर्णित किया जाता है। इन रासों में सोममूर्ति रचित जिनेश्वरसूरि संयम श्री विवाह वर्णन रास, धर्मकलश रचित, जिनकुशलसूरि पट्टाभिषेक रास, सारमूर्ति रचित जिनपद्मसूरि पट्टाभिषेक रास, ज्ञानकलश रचित जिनोदयसूरि पट्टाभिषेक रास और मेरुनन्दनोपाध्याय रचित जिनोदयसूरि विवाहलो, कल्याणचन्द्र रचित कीर्तिरत्नसूरि चौपई, लब्धिकल्लोल रचित जिनचन्द्रसूरि अकबर प्रतिबोध रास, समयप्रमोद रचित युगप्रधान निर्वाण रास, श्रीसार रचित जिनराजसूरि रास, धर्मकीर्ति रचित जिनसागरसूरि रास, सुमतिवल्लभ रचित जिनसागरसूरि निर्वाण रास, कमलहर्ष रचित जिनरत्नसूरि निर्वाण रास, जिनमहेन्द्रसूरि भास, शाहलाधा रचित जिनशिवचन्द्रसूरि रास, सुमतिरङ्ग रचित श्रीकीर्तिरत्नसूरि उत्पत्ति छन्द और जयनिधान रचित साधुकीर्ति स्वर्गगमन गीत आदि की गणना की जा सकती है। इसी प्रकार किसी वर्णन विशेष को लेकर जो गीत लिखे गये हैं वे भी ऐतिहासिक एवं पुरातत्त्व की दृष्टि से प्रामाणिक हैं। रास चौपई - कथाओं के माध्यम से जैन परम्पराओं द्वारा मान्य सिद्धान्तों का पुट देते हुए किन्ही विशिष्ट पुरुषों एवं महासतियों का अन्त में स्वर्गगमन अथवा सिद्धिगमन दिखाते हुए तो गेय पद्धति से रचना की जाती है वह रास और चतुष्पदी कहलाती है। इन गेयात्मक रासों को आधार मानकर नृत्य आदि भी किए जाते हैं। प्रत्येक रास की समाप्ति धर्मतत्त्वों का प्रतिपादन करती हुई शान्त रस में समाप्त होती है। इन रासों में अनेक रसों का अद्भुत संगम मिलता है। समयसुन्दर रचित सीताराम चौपई तो नव रसों का खजाना है। खरतरगच्छीय आचार्यों द्वारा निर्मित रास साहित्य से साहित्य भण्डार भरे हुए हैं। उनमें से प्रसिद्ध और प्राप्त रासों का यहाँ संकलन किया गया है। रास साहित्य की रचना १३वीं शताब्दी से प्रारम्भ होती है जो आज भी निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर है। महाकवि जिनहर्षगणि, समयसुन्दरोपाध्याय, गुणविनयोपाध्याय, धर्मवद्धन उपाध्याय आदि के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते है। __चौवीसी, वीसी - हृदय की अनुभूति पूर्ण और श्रद्धाभक्तिपूर्ण जो स्वर लहरी गुञ्जायमान होकर प्रकट होती है वही चौवीसी, वीसी साहित्य का माध्यम है। अनेक आचार्यों, मुनिपुंगवों एवं श्रावक वर्ग ने भक्ति में डुबकी लगाकर इसके माध्यम से अपने को कृतकृत्य किया है। चौवीसी में ऋषभ से लेकर महावीर पर्यन्त चौवीसी तीर्थंकरों की पृथक्-पृथक् गेय रूप में स्तवना की जाती है और कलश रूप में उसका उपसंहार किया जाता है। इसी प्रकार वर्तमान चौवीसी, अनागत चौवीसी और अतीत चौवीसी के तथा एरवत क्षेत्र के चौवीस तीर्थंकरों की स्तवना की जाती है। वीसी में वीस विहरमान जिनों की स्तवना की जाती है। सीमन्धर स्वामी से लेकर अजितवीर्यजिन तक गेय गीतिका के माध्यम से स्तुति की जाती है और अन्त में कलश रूप में उपसंहार किया जाता है। इसमें लोकप्रधान इन स्तवनों, गीतों की रागें/तर्जे लोकगीतों पर ही आधारित रहती हैं। . महोपाध्याय रामविजयोपाध्याय के प्रशिष्य पुण्यशीलगणि के शिष्य महोपाध्याय शिवचन्द्र XX प्राक्कथन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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