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________________ पद्यस्य त्रयोर्था तथा कई स्तुतियों पर श्रीवल्लभोपाध्याय की अनेक अर्थोत्पादक टीकाएं प्राप्त हैं। संगीतशास्त्र पर मन्त्रि मण्डन का संगीतमण्डन प्राप्त है। मन्त्र - शास्त्र पर पूर्णकलशगणि का महाविद्या, जिनप्रभसूरि का बृहद् सूरिमन्त्र कल्प विवरण और बृहद् ह्रींकार कल्प विवरण, संघतिलकसूरि का वर्द्धमान विद्या कल्प और जिनभद्रसूरि सूरिमन् कल्प आदि प्राप्त हैं । आयुर्वेद साहित्य पर मानकवि का कविप्रमोद और कविविनोद गुणविलास का गुणरत्न प्रकाशिका, रामचन्द्रगणि का रामविनोद, वैद्यविनोद प्राप्त हैं। ऋद्धिसारगणि का वैद्यदीपक उल्लेखनीय कृति है । ज्योतिष विद्या पर जिन्रोदयसूरि का उदयविलास, लक्ष्मीवल्लभोपाध्याय का कालज्ञान भाषा, ठक्कुर फेरु का गणितसार, अभयकुशल का चमत्कार चिन्तामणि टीका, महिमोदय का ज्योतिष रत्नाकर, पुण्यतिलक का नरपति जयचर्या टीका और हीरकलश इत्यादि उल्लेखनीय रचनाएं प्राप्त हैं। १५वीं सदी के विद्वान् श्रावकों में मन्त्री धनद और मन्त्रि मण्डन के कृतित्व को भी नहीं भुलाया जा सकता। ये माण्डवगढ़ के मन्त्री थे और थे जिनभद्रसूरि के परम भक्त । मन्त्री धनद ने भतृहरि के अनुकरण पर शृङ्गारशतक, नीतिशतक और वैराग्यशतक की रचना की। मन्त्री मण्डन अलङ्कार मण्डन, चम्पू मण्डन, संगीत मण्डन, काव्य मण्डन आदि मण्डन संज्ञक रचनाओं से १० काव्यों की रचना की। अञ्जनशलाका और प्रतिष्ठादि विधानों के लिए सब गच्छों का मान्य ग्रन्थ है आचारदिनकर। इसके प्रणेता खरतरगच्छ की रुद्रपल्लीय शाखा के हैं। रचना संवत् है ९४६८ । इस ग्रन्थ में दो विभाग हैं::- १. ग्रहस्थों के १६ कर्म, २. अञ्जनशलाका प्रतिष्ठा स्थापना विधि आदि । इसके रचनाकाल से ही यह ग्रन्थ सर्वमान्य रहा है। इसको आदर्श मानकर कुछ परिवर्तन कर आज भी सर्वत्र इसका उपयोग देखा जा सकता है। खण्डन-मण्डन साहित्य / चर्चा का उद्भव विक्रम की १७वीं शताब्दी के प्रथम दशक में ही हुआ। इससे पूर्व समस्त गच्छ वाले सौमनस्य और सौहार्द के साथ रहते थे, अपनी परम्परा का पालन कर रहे थे। जयसोमोपाध्याय और गुणविनयोपाध्याय ने कई चर्चा ग्रन्थ लिखकर खरतरगच्छीय मान्यताओं का प्रतिपादन किया। इसी क्रम में २०वीं शताब्दी में तत्कालीन खरतरगच्छीय श्रीमणिसागरजी (स्व. श्री जिनमणिसागरसूरि) ने कलकत्ता और बम्बई चातुर्मास करते हुए तीन ग्रन्थों का निर्माण किया :- १. बृहद् पर्युषणा निर्णय २. षट्कल्याणक निर्णय | चर्चा साहित्य के दो ग्रन्थों का और निर्माण किया, वे हैं :- देवद्रव्यनिर्णय, आगमानुसार मुहपत्ति का निर्णय और साध्वी व्याख्यान निर्णय । भाषा-साहित्य जन मानस पर धर्म का बीज वपन, अंकुरित, पुष्पित करने के लिए जैन श्रमणों ने लोक भाषा XVIII Jain Education International प्राक्कथन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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