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________________ लिखा है वह चम्पू काव्य का प्रतिनिधित्व करता है। इससे पूर्व कोई विज्ञप्ति पत्र प्राप्त हो ऐसा संकेन नहीं मिलता है। इसी शैली में जयसागरोपाध्याय ने १४८४ में जो विज्ञप्ति पत्र (विज्ञप्ति त्रिवेणी) जिनभद्रसूरि को भेजा। वह सचमुच में नगरकोट का ऐतिहासिक स्वरूप प्रकट करता है। परवर्ती काल में महोपाध्याय समयसुन्दर, धर्मवर्द्धनगणि, दयासिंहगणि, ज्ञानतिलकोपाध्याय, राजविजयोपाध्याय, रामविजयोपाध्याय, जयशेखर आदि के भी अनेकों साहित्य लक्षणोपेत एवं सचित्र विज्ञप्ति पत्र प्राप्त होते हैं। श्री तरुणप्रभसूरि ने १४११ में षडावश्यक सूत्र पर मरुगुर्जर शैली में बालावबोध रूप भाषा टीका लिखकर एक ऐतिहासिक युग का सूत्रपात किया। प्राचीन राजस्थानी का स्वरूप इसमें प्राप्त होता है। श्री मेरुसुन्दरोपाध्याय ने विदग्धमुखमण्डन, वाग्भटालङ्कार, वृतरत्नाकार, शीलोपदेशमाला आदि विविध विषयों के १५ ग्रन्थों पर भाषा टीका के रूप में बालावबोध की रचना कर तरुणप्रभसूरि की शैली को परिपुष्ट किया। इसके पश्चात् तो इस भाषा और शैली के विकास में अनेको लेखकों ने बालावबोध की रचना की। प्रभुभक्ति और आत्मशुद्धि को लक्ष्य में रखकर अनेक कवियों ने अनेक भाषाओं, छन्दों, विविध विधाओं में अपने हृद्गत भावों को स्तोत्र साहित्य में प्रकट किया है। श्री जिनेश्वरसूरि, अभयदेवसूरि, देवभद्रसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि, जिनपतिसूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनरत्नसूरि, जिनकुशलसूरि, जिनप्रभसूरि, विनयप्रभोपाध्याय, जयसागरोपाध्याय, श्रीवल्लभोपाध्याय, समयसुन्दरोपाध्याय आदि की जो स्तुति, स्तव और स्तोत्र के नाम से रचनाएं प्राप्त होती हैं उनको पढ़कर हृदय आह्लादित ही नहीं होता वरन् प्रभु के साथ तन्मयता स्थापित करता है। जिनप्रभसूरि का पारसी भाषा और छ: भाषाओं में रचित स्तोत्रों की रमणीयता देखने योग्य है। कहा जाता है कि जिनप्रभसूरि ने स्वरचित ७०० स्तोत्र तपागच्छीय प्रभाविक आचार्य को समर्पित किए थे।आज यदि खरतरगच्छ आचार्यों द्वारा रचित स्तोत्रों का संकलन किया जाए तो वह संख्या सहस्राधिक ही होगी। आगमिक ग्रन्थों पर अभयदेवसूरि के पश्चात् श्री जिनहंससूरि एवं जिनचन्द्रसूरि (आद्यपक्षीय) की आचाराङ्गसूत्र दीपिका और टीका, श्री साधुरङ्गोपाध्याय कृत सूत्रकृताङ्गसूत्र टीका, वादी हर्षनन्दन और सुमतिकल्लोल रचित स्थानाङ्ग गाथागतवृत्ति, जिनराजसूरि की स्थानाङ्ग सूत्र टीका, कस्तूरचन्द्रगणि कृत ज्ञाताधर्मकृताङ्गसूत्र टीका और मतिकीर्तिगणि कृत दशाश्रुतस्कन्ध टीका आदि प्राप्त हैं। कल्पसूत्र पर तो अनेकों टीकाएँ और बालावबोध प्राप्त हैं जिनमें से प्रमुख-प्रमुख लेखक हैं :- जिनप्रभसूरि, मेरुसुन्दरोपाध्याय, लक्ष्मीवल्लभोपाध्याय, समयसुन्दरोपाध्याय, कमललाभोपाध्याय, गुणविनयोपाध्याय, जिनसमुद्रसूरि आदि । उत्तराध्यन सूत्र पर कमलसंयमोपाध्याय, लक्ष्मीवल्लभोपाध्याय आदि की विशद टीकाएं प्राप्त है। प्रकरण ग्रन्थों में आचार्य अभयदेव कृत पुद्गल षट्त्रिंशिका, निगोद षट्त्रिंशिका, सप्तति प्राक्कथन XV Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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