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________________ क्षीराम्भोधिसुधांशुना जगधरश्राद्धेशितुः सूनुना। श्रीप्रह्लादनपत्तने भुवनपालेनामुना साधुना, पद्माकस्य सुतेन साढलमहाश्राद्धेन चाभ्यर्थितः ॥ ३० ॥ स्वपूर्वजश्रीमदशोकचन्द्र - श्रीनेमिचन्द्रादिमसूत्रधारः। दृब्धोत्तराध्यायविवृत्तिसूत्रानुसारतश्चार्वतिसंघटय्य ॥३१॥ यस्मिन् भान्त्यनुपर्वकाननमहो श्रीसर्गसिद्धालयाश्चत्वारः स्फरदद्भुतायतनभूः सर्गोऽन्तिमश्चूलिका। विष्वग्वैबुधहन्मनोरमतमं प्रत्येकबुद्धर्षिराटचातुर्यस्य चरित्रमेतदतुलं चक्रे सुवर्णाचलम् ॥ ३२॥ चतुर्भिः कलापकं॥ श्रीमत्सूरिजिनेश्वरप्रभृतिभिः साहित्यसिन्धोः पिवैः, श्रीद्विव्याकरणैः ? सुधीभिरमलीचक्रे प्रयत्नाच्च तत्। प्रेक्षावत्प्रवरैः परैश्च विमलीकार्य विचार्याऽऽदराद,रुद्राग्नींदु १३११ शरत्तपस्यविमलैकादश्यहेऽपूरि च ॥ ३३ ॥ * * ** श्री अभयदेवसूरि (रुद्रपल्लीय) ने विक्रम संवत् १२७८ में जयन्तविजय महाकाव्य और श्री अभयदेवसूरि-वर्द्धमानसूरि की परम्परा में श्री विबुधप्रभसूरि ने १३वीं शताब्दी में प्राकृत कुन्थुनाथ चरित्र और पद्मप्रभसूरि ने विक्रम संवत् १२९४ में श्री मुनिसुव्रत चरित्र महाकाव्य की रचना की। श्री जिनकुशलसूरिजी ने श्री जिनेश्वरसूरि कृत चैत्यवन्दन कुलक कर विशद टीका का १३८३ में निर्माण किया। श्री जिनकुशलसूरि के समय में ही श्रीमालवंशीय ठक्कुर फेरु जो की अलाउद्दीन खिलजी की टंकशाला के अध्यक्ष थे, ने नई विधा का आश्रय लेकर द्रव्यपरीक्षा (मुद्राशास्त्र), रत्नपरीक्षा (जवाहरात), धातुपरीक्षा (विज्ञान) और गणितपरीक्षा तथा ज्योतिषसार (ज्योतिष शास्त्र) की रचना की। नई-नई विधाओं में रचना करने का युग प्रारम्भ हो चुका था। श्री जिनप्रभसूरि (१४वीं सदी) ने अनेक तीर्थों पर कल्प लिखकर विविध तीर्थ कल्प का निर्माण किया।अनेक समाचारी ग्रन्थों का आलोडन कर प्रामाणिक विधि मार्ग प्रपा का निर्माण किया। इसमें प्रतिक्रमण विधि से लेकर उपधान, तपस्या, योगोद्वहन, जिन प्रतिष्ठा आदि मौलिक विधियाँ संकलित हैं। कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि रचित व्याश्रय काव्य के अनुकरण पर व्याश्रय महाकाव्य लिखा, जिसमें कातन्त्र व्याकरण और महाराजा श्रेणिक का चरित्र गुम्फित है। मेरुनन्दनोपाध्याय ने विक्रम संवत् १४३१ में लोकहिताचार्य को जो विशद विज्ञप्ति पत्र XIV प्राक्कथन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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