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३०५७. हरिकेशी संधि, कनकसोमगणि / अमरमाणिक्य उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६४० वैराट,
'आदि-पणमीय पासनाह चिंतामणि..., अन्त-खरतरगछि जिनभद्र साखइ...', अ., ह.
रा.प्रा.वि.प्र., जयपुर, उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-३, पृ. ७४४ ३०५८. हरिकेशी संधि, सुमतिरङ्गगणि / चन्द्रकीर्त्तिगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७२७ मुलता
'आदि-साधु सकल प्रणमी करी..., अन्त-बावउ बावउरी हरिकेशी बल गुण गावउ..
अ., उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-२, पृ. २०१ ३०५९. हरिबल चौपई, चारुचन्द्र उ० / भक्तिलाभ उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १५८१, अ., ह.
जयचन्द संग्रह, बीकानेर, उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-३, पृ. १४९५ ३०६०. हरिबल चौपई, जिनसमुद्रसूरि / जिनचन्द्रसूरि बेगड़, रास चौपई, राजस्थानी, १७०६, अ.,
__ ह. जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर ३०६१. हरिबल चौपई, दयारत्नगणि / हर्षकुशलगणि आद्यपक्षीय, रास चौपई, राजस्थानी, १६९१
जोधपुर, अ., ह. नाहर संग्रह, कलकत्ता ३०६२. हरिबल चौपई, पुण्यहर्षगणि / ललितकीर्त्ति उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १७३५ सरसा, आदि
___ श्री गुरु पय प्रणमी करी..., अन्त–भिहुं नगरीनो नृप थयो...', अ., ह. खजांची संग्रह, बीकानेर ३०६३. हरिबल चौपई, लावण्यकीर्त्तिगणि / ज्ञानविलासगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६७१
जैसलमेर, अ., ह. यति नेमिचन्द संग्रह, बाड़मेर ३०६४. हरिबल मच्छी चौपई, राजरत्नसूरि (राजशीलगणि / साधुहर्ष उ०) / विवेकरत्नसूरि
पिप्पलक, रास चौपई, राजस्थानी, १५९९, अन्त-खरतरगच्छि गोयम समवडि विवेकरतन
सूरींद...', अ., ह. खजांची संग्रह, बीकानेर, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा ३०६५. हरिबल मच्छी रास, जिनहर्षगणि / शांतिहर्षगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७४६ पाटण,
'आदि-शान्तिकरण श्रीशान्तिजिन... अन्त–संवत् छतर छेतालिसमेरे... गा. ११', मु., आनन्द
काव्य महोदधि भाग-३ । ३०६६. हरिबल सन्धि, कनकसोमगणि / अमरमाणिक्य उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १७वीं, अ. ३०६७. हरिभक्तामर ( भक्तामर स्तोत्र पादपूर्ति), जिनकवीन्द्रसागरसूरि / जिनहरिसागरसूरि, स्तोत्र,
__ संस्कृत, २१वीं, अ., उ. भक्तामर रहस्य : धीरजलाल टोकरसी शाह ३०६८. हरिवाहन चौपई, जिनसिंहसूरि, रास चौपई, राजस्थानी, १७वीं, 'आदि-शुभमति सम्पत्ति
सकल सुख..., अन्त–अपूर्ण', अ. महिमाभक्ति-बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर ३०६९. हरिविलास, जिनहरिसागरसूरि / भगवानसागर, गीत स्तवन, हिन्दी, २०वीं-२१वीं, अ., ह.
हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा ५८१ ३०७०. हरिश्चन्द्र चौपई, जिनहर्षगणि / शान्तिहर्षगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७४४ पाटण, आदि
वीर जिणेसर पाय नमुं..., अन्त-रास रचउ रलीयामणउ सतरइ चम्मालीस हो...', अ., उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-२, पृ. ९५, भाग-३, पृ. ११५८
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