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________________ | एक अभूतपूर्व कार्य ॥ श्रीसद्गुरुभ्यो नमः॥ विद्वद्वर्य महोपाध्याय श्री विनयसागरजी द्वारा खरतरगच्छ साहित्य कोश तैयार किया जा रहा है। काफी परिश्रम उठाकर श्रुत समुद्र से ७५०० जितनी कृतियों की जानकारी इसमें संकलित की है। आपका यह प्रयास साहित्य जगत में बहूपयोगी सिद्ध होगा ऐसा मेरा मानना है। खरतरगच्छीय जैन साहित्य में आपकी रुचि और प्रयत्न विशेष सराहनीय है। इस क्षेत्र के स्कोलरों एवं विद्वानों को आपका यह कोश नि:शंक आदरणीय रहेगा। आगम, प्रकरण, उपदेश आदि सभी प्रकार की कृतियों को इसमें स्थान देने के कारण यह रेफरन्स ग्रन्थ का स्थान पा सकेगा। श्री महोपाध्याय को खूब-खूब धन्यवाद देता हूँ। आपने संशोधन के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा है। लोगों को इस ग्रन्थ के माध्यम से नयी-नयी जानकारियाँ मिलेंगी और जैन साहित्य की समृद्धि बढ़ेगी। ऐसी शुभकामना के साथ ज्ञानतीर्थ कोबा - गाँधीनगर आचार्य पद्मसागरसूरि दिनाङ्क १०-३-०६ | उत्तम साहित्य सेवा ॥ नमो नमः श्रीगुरुनेमिसूरये॥ तगडी, नन्दनवन तीर्थ २३-०३-०६ साहित्यवाचस्पति श्रीविनयसागर महोदय धर्मलाभ। __यह जानकर खुशी हुई कि आपके द्वारा निर्मित खरतरगच्छ साहित्य कोश प्रकाशनाधीन है। जैन श्वे. मू. पू. संघ में ८४ गच्छ थे। सभी गच्छों में विशिष्ट आचार्यादि महापुरुष हुए और सभी ने विविध ग्रन्थनिर्माण कर जैन शासन व साहित्य की अनूठी सेवा की। खरतरगच्छ भी उन्हीं गच्छों में समाविष्ट है। इस गच्छ के महानुभावों द्वारा निर्मित-संकलित प्राचीन-नवीन साहित्य का कोश आपने निर्माण किया, यह सचमुच में उचित-उमदा व उत्तम साहित्यसेवा है उसमें कोई शंका नहीं। आपके इस साहित्यिक कार्य की मैं हृदय पूर्वक सराहना करता हूँ व खूब खूब धन्यवाद प्रेषित करता हूँ। विजयशीलचन्द्रसूर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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