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________________ निरक्त कोश ५ . २६२. उण्णत (उन्नत) उच्छिन्नं नतं-पूर्वप्रवृत्तनमनमभिमानादुन्नतम् । (भटी पृ १०५१) अभिमानवश विनम्रता को छोड़ देना उन्नत/मान है। २६३. उण्णय (उन्नय) उच्छिन्नो नयो-नीतिरभिमानादेवोन्नयः। (भटी पृ १०५१) अभिमानवश नय/नीतिमार्ग से हट जाना उन्नय/मान है। २६४. उण्ह (उष्ण) उषति-दहति जन्तुमिति उष्णम् । (उशाटी प ३८) जो प्राणियों को जलाता है, वह उष्ण अग्नि है । २६५. उत्तप्प (उत्त्रप्य) उत्प्राबल्येन त्रप्यते लज्यते येन तत् उत्त्रप्यम् । (व्यभा १० टी प ३८) जिससे लज्जित होना पड़ता है, वह उत्त्रप्य/अवयवहीन शरीर है। २६६. उत्तम (उत्तम) मिच्छत्तमोहणिज्जा नाणावरणाचरित्तमोहाओ । तिविहतमा उम्मुक्का' तम्हा ते उत्तमा' हुंति ॥ (आवनि १०६३) जो तीन प्रकार के तम (मिथ्यात्व, अज्ञान और कषाय) से उन्मुक्त हैं, वे उत्तम/सिद्ध हैं। तमो-संसारो ताओ उम्मुक्का तेण उत्तमाः। जो तम/संसार से उन्मुक्त हैं, वे उत्तम हैं। ओघातितो वा तमो यस्ते उत्तमाः। (आवचू २ पृ १२) १. उद्-उद्भवोर्ध्वगमनोच्छेदनेषु । (आवचू २ पृ ११,१२) २. 'उत्तम' का अन्य निरुक्तअतिशयेन उद्गतमुत्तमम् । (अचि पृ ३२२) जो विशिष्ट है, वह उत्तम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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