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________________ निरुक्त कोश १९८. आयंदम (आत्मदम) आत्मानं दमयति- शमवन्तं करोति शिक्षयति वेत्यात्मदमः । (स्थाटी प २०७) जो आत्मा का दमन शमन करता है, वह आत्मदम है। जो आत्म-दमन की शिक्षा प्रदान करता है, वह आत्मदम है । १६६. आयंस (आदर्श) आदृश्यते अस्मिन्नित्यादर्शः। __ (आटी प ५) जिसमें प्रतिबिम्ब देखा जाता है, वह आदर्श/दर्पण है। २००. आयतण (आयतन) एत्य तस्मिन् यतति आयतणं । (दअचू पृ १०१) जहां आकर प्रवृत्ति की जाती है, वह आयतन/स्थान है। आइज्जति अस्ससंति वा आयतणं । __ (आचू पृ ७३) जो स्वीकार किया जाता है, वह आयतन है। जो आश्वस्त करता है, वह आयतन है । २०१. आयतर (आत्मतर) आत्मानं केवलं तारयन्तीत्यात्मतराः। (व्यभा ३ टी प ३) जो केवल आत्मा/स्वयं को तारते हैं, वे आत्मतर हैं । २०२. आयदंड (आत्मदण्ड) आत्मानं दण्डयति आयदंडे । (सूचू २ पृ ४२७) जो आत्मा को दण्डित करता है, वह आत्मदंड है । २०३. आययट्ठि (आयतार्थिन् ) आयतं अट्ठाणविप्पकरिसतो मोक्खो, तेण तंमि वा अत्थी आययत्थी। जो आयत/मोक्ष की आकांक्षा करता है, वह आयतार्थी है । आययी आगामी कालो तम्मि सुहत्थी आययत्थी। (दअचू पृ २२६) जो आयत/आगामी काल में सुख का इच्छुक है, वह आयतार्थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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