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________________ निरुक्त कोश १८८. अभिओगिय (आभियोगिक ) अभियोजनं - विद्या मन्त्रादिभिः परेषां वशीकरणादि अभियोगः, सोऽस्ति येषां तेन वा चरन्तीति अभियोगिका आभियोगिका वा । ( प्रज्ञाटी प ४०६ जो विद्या मंत्र आदि के द्वारा दूसरों का अभियोजन / वशीकरण करते हैं, वे आभियोगिक हैं । १८. आभिजोग्ग ( आभियोग्य ) आ-- समन्तात् इत्याभियोग्याः । आभिमुख्येन युज्यन्ते — प्रेष्यकर्मणि व्यापार्यन्ते ( प्रसाटी प १७९ ) जिनको सबके समक्ष प्रेष्य कार्य में नियुक्त किया जाता है, वे अभियोग्य / कर्मकर हैं । १०. आभिणिबोहिय ( आभिनिबोधिक) afragore त्ति आभिणिबोहियम् । ( नं ३५) जो इन्द्रिय आदि द्वारा जाना जाता है, वह आभिनिबोधिक / मतिज्ञान है । ३५ अत्याभिहो नियओ बोहो जो सो मओ अभिनिबोहो । सो चेवाssभिणिबोहिअ'' 11 ( विभा ८० •) जो अर्थाभिमुख नियत बोध होता है, वह आभिनिबोधिक / मतिज्ञान है । आता तदभिनिबुज्झए, तेण वाभिणिबुज्झते, तम्हा वाभिणिबुज्झते तम्हि वाभिणिबुज्झए इत्ततो आभिनिबोधिकः । ( नंच पृ १३ ) करती है, वह आत्मा जो / जिससे / जिसमें अभिनिबोध प्राप्त आभिनिबोध / मतिज्ञान है । १६१. आमलय (आमरक) रश्रुतेर्लश्रुतिरित्या मरक:- सामस्त्येन मारिः । Jain Education International जो सामूहिक मरक / वध होता है, वह आमरक है । For Private & Personal Use Only ( स्थाटी प ४८६ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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