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________________ निरुक्त कोश ११५. अभियुअ ( अभिष्टुत) आभिमुख्येन स्तुता अभिष्टुताः । ( आवहाटी २ पृ ११ ) जिनकी प्रधान रूप से स्तुति की जाती है, वे अभिस्तुत / तीर्थंकर हैं । ११६. अभिलप्प ( अभिलाप्य ) अभिलाप्यते वस्त्वभिलाप्यमनेनेति अभिलापः । ( बृटी पृ ५) जिससे वस्तु का अभिलाप / कथन किया जाता है, वह अभि+ लाप है । ११७. अभिहड (अभिहृत) अभि-साध्वभिमुखं हृतं - स्थानान्तरादानीतम् अभिहृतम् । ( पिटी पृ ३५ ) जो आहार आदि दूसरे स्थान से साधु को देने के लिए लाया जाता है, वह अभिहृत / भिक्षा का दोष है । ११८. अमणाम (दे) न मनसा अम्यन्ते – गम्यन्ते पुनः पुनः स्मरणतो ये तेऽमणामाः । (भटी प ७२) जिनका मन के द्वारा बार-बार स्मरण नहीं किया जाता, वे अमणाम / अमनोज्ञ हैं । ११. अमणुण्ण ( अमनोज्ञ ) मनसा न ज्ञायन्ते --- नाभिलष्यन्ते अमनोज्ञाः । ( उपाटी पृ २४३ ) जिनकी मन के द्वारा आकांक्षा नहीं की जाती, वे अमनोज्ञ हैं । ( दअचू पृ २५७ ) १२०. अमर ( अमर ) ण जेसि मरो अत्थि ते अमराः । जिनके मर / मरण नहीं है, वे अमर हैं । २१ १२१. अय (अज) अजतीत्यजः । ' ( उचू पृ १६० ) जो बलि / यज्ञ के लिए ले जाया जाता है, वह अज / बकरा है । १. अजति वातमजा (अचि पृ २८५ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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