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________________ १८ निरुक्त कोश ६५. अत्योग्गह (अर्थावग्रह) अर्यते-अधिगम्यतेऽर्थ्यते वा अन्विष्यत इत्यर्थः, तस्य सामान्यरूपस्य अशेषविशेषनिरपेक्षा निर्देश्यस्य रूपादेरवग्रहणं-प्रथमपरिच्छेदनमर्थावग्रहः। (स्थाटी प ४६) सभी विशेषणों से निरपेक्ष, सामान्यरूप से अर्थ पदार्थ का अवग्रहण करना अर्थावग्रह है। ६६. अदत्तहारि (अदत्तहारिन्) अदत्तं हरतीति अदत्तहारी। (सूचू १ पृ १२७) जो अदत्त का हरण करता है, वह अदत्तहारी/चोर है । १७. अद्द (अर्थ) अर्थ ते—गम्यतेऽनेनेत्यईः। (भटी पृ १४३१) जिसमें गति की जाती है, वह अर्द/आकाश है। १८. अद्धा (अध्वन्) ___ अत्ति प्राणानित्यध्वा । (उचूपृ १८३) जो प्राणों का भक्षण करता है, वह अध्वा/मार्ग है। ६६. अधम्मपलज्जण (अधर्मप्ररञ्जन) अधर्मप्रायेषु कर्मसु प्रकर्षेण रज्यन्त इति अधर्मप्ररक्ताः । (सूटी २ प ७२) जो अधार्मिक कार्यों में अत्यन्त रक्त/आसक्त हैं, वे अधर्मप्ररक्त १००. अपुवकरण (अपूर्वकरण) अपूर्वामपूर्वा क्रियां गच्छतीत्यपूर्वकरणम् । (भाटी प २६७) _____ जो नई-नई क्रियाओं/अवस्थाओं को प्राप्त होता है, वह अपूर्व करण है। १०१. अप्प (आत्मन्) अतति-सन्ततं गच्छति शुद्धिसंक्लेशात्मकपरिणामान्तराणीत्यात्मा। (उशाटी प ५२) जो विविध भावों में परिणत होती है, बह बात्मा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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