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________________ ३६७ “निरक्त कोश २१. णमि (नमि) पणया पच्चंतनिव्वा दसियमित्त जिणंमि तेण नमी। __(आवनि १०६०) (शत्रु राजाओं ने नगर को घेर रखा था ।) ज्योंही राजाओं ने अट्टालिका पर खड़ी गर्भवती रानी 'वा' को देखा, गर्भ के प्रभाव से वे सभी राजे तत्काल प्रणत हो गये, अतः शिशु का नामकरण हुआ-नमि (२१ वें तीर्थंकर) । परीषहोपसर्गादिनमनान्नमिः। सव्वेहिवि परीसहोवसग्गा णामिया कसाय त्ति । __ (आवहीटी २ पृ ११) जो परीषह, कषाय आदि को नमित/नष्ट करता है, वह नमि है। २२. रिटुनेमि (अरिष्टनेमि) रिटुरयणं च नेमि उप्पयमाणं तओ नेमी। (आवनि १०६०) गर्भवती माता शिवा ने स्वप्न में अत्यन्त विशाल अरिष्टरत्नमय नेमि/चक्र को ऊपर उठते हुए देखा, अतः बालक का नाम रखा-अरिष्टनेमि (२२ वें तीर्थंकर)। धर्मचक्रस्य नेमिवन्नेमिः । सव्वेवि धम्मचक्कस्स णेमीभूयत्ति । (आवहाटी २ पृ ११) जो धर्मचक्र के नेमिभूत/धुरा के समान है, वह नेमि है । २३. पास (पश्यक/पार्श्व) सप्पं सयणे जणणी तं पासइ तमसि तेण पासजिणो। (आवनि १०६१) माता वामा ने अपनी शय्या पर लेटे-लेटे (गर्भ के प्रभाव से) अंधेरे में भी सर्प को देख लिया, इसलिए अपने पुत्र को 'पार्श्व' नाम से संबोधित किया। (पास-पश्य-दृश्)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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