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________________ 'नियत कोश ३६१ संभवन्ति प्रकर्षण भवन्ति चतुस्त्रिशदतिशयगुणा अस्मिन्निति सम्भवः। (आवहाटी २ पृ ८) जिसमें चौंतीस अतिशय सम्भव/प्रकृष्टरूप में विद्यमान हैं, वह संभव है। ४. अभिणंदण (अभिनन्दन) अभिणंदई अभिक्खं सक्को अभिणंदणो तेण। (आवनि १०८१) गर्भकाल से लेकर निरन्तर शक्र ने जिनका अभिनंदन किया, वे (चतुर्थ तीर्थकर) अभिनंदन की अभिधा से अभिहित हुए। अभिनन्द्यते देवेन्द्रादिभिरित्यभिनन्दनः। (आवहाटी २ पृ ८) जो देवेन्द्र आदि द्वारा अभिनंदित है, वह अभिनंदन है। “५. सुमइ (सुमति) जणणी सव्वत्थ विणिच्छएसु सुमइत्ति तेण सुमइ जिणो। (आवनि १९२) जब वे (पंचम तीर्थंकर) गर्भ में थे, उस समय माता मंगला ने प्रत्येक व्यवहार में सुमति/प्रभूत बुद्धिमत्ता का परिचय दिया (दो माताओं के पाण्मासिक कलह का कुशलता से उपशमन किया) । इस कारण से उनका नाम सुमति रखा गया। शोभना मतिरस्येति सुमतिः। (आवचू २ प १०) __ जिसकी मति श्रेष्ठ है, यह सुमति है। ६. पउम (पद्म) पउमसयणमि जणणोइ डोहलो तेण पउमाभो। (आवनि १०८२) गर्भवती माता सुसीमा को पद्मशय्या में शयन करने का दोहद उत्पन्न हुआ, इसीलिए उन (छठे तीर्थंकर) का नाम पद्म रखा गया। पउमवण्णो य भगवं तेण पउमप्पहोत्ति ।' (आवहाटी २ पृ.९) १. इह निष्पङ्कतामङ्गीकृत्य पद्मस्येव प्रभा यस्यासौ पद्मप्रभः । (आवहाटी २ पृ९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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