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________________ निरुक्त कोश ३०. अग्गेणीय (अग्रायणीय) अग्ग-परिमाणं वणिज्जइ त्ति अग्गेणीतं । (नंचू पृ ७५) ___ जिसमें अग्र/परिमाण का वर्णन है, वह अग्रायणीय (दूसरा पूर्व) है। ३१. अचल (अचल) अचलतीति अचलो। (आचू पृ २६२) जो चलित नहीं होता, वह अचल है । ३२. अच्चा (अर्चा) अच्चीयते तमिति अच्चा । (आचू पृ १४४) जिसकी पूजा की जाती है, वह अर्चा/शरीर है। अर्चयन्ति तां विवधराहारैर्वस्त्राद्यलङ्कारैश्चेत्यर्चा । (सूचू १ पृ २२५) जो विविध प्रकार के आहार, वस्त्र और अलंकारों से अर्चितपूजित होता है, वह अर्चा/शरीर है । ३३. अच्चिमालि (अचिमालिन्) रस्सीओ-अच्चीओ तासि माला अच्चिमाला। सा जस्स अस्थि सो अच्चिमाली। (दअचू पृ २१०) जिसके अचि रश्मि रूप माला है, वह अचिमाली/सूर्य है । ३४. अच्चंत (अत्यन्त) अन्तमतिक्रान्तोऽत्यन्तः। (उशाटी प ६१२) जिसने अंत का अतिक्रमण कर दिया, वह अत्यंत है । ३५. अच्छि (अक्षि) अश्नोतीत्यक्षिः । (उचू पृ २०८) जो व्याप्त होती है, वह अक्षि/आंख है। जो विषयों/पदार्थों को ग्रहण करती है, वह अक्षि है। ३६. अच्छिज्ज (आच्छेद्य) आच्छिद्यते-अनिच्छतोऽपि दानाय परिगृह्यते यत् तदाच्छेद्यम् । (पिटी प ३५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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