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________________ ३२८ निरुक्तकोश जिससे हनन/मारा जाता है, वह हस्त/हाथ है । हसति वा मुखमावृत्येति हस्तः । (निचू २ पृ २) जिससे मुख ढांक कर हंसा जाता है, वह हस्त है । १७३७. हत्थितावस (हस्तितापस) हस्तिनं व्यापाद्यात्मनो वृत्ति कल्पयन्तीति हस्तितापसाः । (सूटी २ प १५६) जो हाथी मारकर आजीविका चलाते हैं, वे हस्तितापस हैं। १७३८. हय (हय) हिनोति' हीयते हयः । (सूचू २ पृ ३५४) ___ जो तेज और विशेष गति से चलता है, वह हय घोड़ा है । १७३६. हयजोहि (हययोधिन्) हयेन- अश्वेन युध्यत इति हययोधी। (औटी पृ १९४) जो हय अश्व के द्वारा युद्ध करते हैं, वे हययोधी हैं । १७४०. हर (हर) हरतोति हरः । (उचू पृ २२४) जो हरण करती है, वह हर/मृत्यु है। १७४१. हरिएस (हरिएस, हरिकेश) हरति ह्रियते वा हरिः। हरि एसतीति हरिएसो।' (उचू पृ २०३) जो हरण करता है, जिसके द्वारा हरण किया जाता है, वह हरि यमदूत कहलाता है । हरि की एषणा करने वाला हरिएस है। १७४२. हव्ववाह (हव्यवाह) हव्वं वहतीति हव्ववाहो। (आचू पृ १४६) __जो हवन को वहन करता है, वह हव्यवाह/अग्नि है। १. हि--वर्द्धने गतौ च । २. हयति गच्छतीति हयः । (शब्द ५ पृ ५०५) ३. हरि---कपिल वर्ण की जटावाला हरिकेश है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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