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________________ निरुक्त कोश ३२३ १७०८. सेउकर (सेतुकर) सेतुः मार्गस्तं करोतीति सेतुकरः । (राटी पृ २५) जो सेतु! मार्ग का निर्माण करता है, वह सेतुकर मार्गदर्शक १७०६. सेज्जंस (श्रेयांस) श्रेयः श्रेयसि तस्मिन्निति श्रेयांसः । (आचू पृ ३७५) जिसमें श्रेय कल्याण निहित है, वह श्रेयांस है । १७१०. सेज्जा (शय्या) शेरते आस्विति शय्याः। (प्रसाटी प २३७) जिनमें शयन किया जाता है, वे शय्या हैं । १७११. सेज्जातर (शय्यातर) गोवाइऊण वसहि तत्थ वि ते यावि रक्खि तरइ ।' तद्दाणेण भवोघं च तरति सेज्जातरो तम्हा।। (बभा ३५२३) ___ जो शय्या वसति का तरण संरक्षण करने में समर्थ है, वह शय्यातर है। जो शय्या/उपाश्रय में स्थित साधुओं का रक्षण करता है, वह शय्यातर है। ___ जो शय्या वसति के दान से संसार को तरता है, वह शय्यातर है। १७१२. सेज्जादाउ (शय्यादातृ) सेज्ज ददाति सेज्जादाता । (निचू २ प १३१) जो शय्या 'सति देता है, वह शय्यादाता है । १७१३. सेज्जाधर (शय्याधर) अम्हा धारण विज्पडमणि छज्जलेपनाईहि। जं वा तीए धरेति नगा आयं धरो सम्हा। (बृभा ३५२४) १. 'तत्र' तस्यां --शय्यायां स्थितान् साधन स्तेनादिप्रसपायेभ्यो रक्षितुं तरति शय्यातरः । (बृटी पृ९८१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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