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________________ -३१८ १६७९. सुप्पभा (सुप्रभा) सुष्ठु - प्रकर्षेण च भाति - शोभते या सा सुप्रभेति । १६८०. सुफणि (दे ) (ओटी पृ २१९ ) जो सुन्दर रूप में सुशोभित होती है, वह सुप्रभा / मुक्ति है । सुखं फणिज्जति जत्थ सा भवति सुफणी । है । १६८१. सुभ (शुभ) ( सूचू १ पृ ११७ ) जिसमें सुखपूर्वक पकाया / रांधा जाता है, वह सुफणी ( पात्र ) शोभते सर्वावस्थास्वनेनात्मेति शुभम् । शुभ है । ( उशाटी प ६४४) जिसमें आत्मा सब अवस्थाओं में सुशोभित होती है, वह -१६८२. सुभासिय ( सुभाषित) सोभणाणि भासिताणि सुभासिताणि । -१६८३. सुमुणित ( सुज्ञात) सुट्ठ मुणितं सुमुणितं । Jain Education International निरक्त कोश जो सुन्दर भाषण / कथन हैं, वे सुभाषित हैं ! * १६८४. सुय ( श्रुत) (दअचू पृ २११ ) जो अच्छे प्रकार से ज्ञात होता है, वह सुज्ञात है । ( नं पृ ११ ) सुतीति सुयं । ( वृभा १४७ ) तत्शृणोति तेण वा सुणेति, तम्हा वा सुणेति, तम्हि वा सुतोति सुतं । For Private & Personal Use Only जो / जिससे / जिसमें या जिसको सुना जाता है, वह श्रुत है । आत्मैव वा श्रुतोपयोगपरिमादनन्यत्वात्शृणोतीति श्रुतम् । (नंचू पृ १३ ) श्रुतोपयोग में परिणत आत्मा अनन्य होकर जो सुनती है, वह श्रुत है । www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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