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________________ ३१६ निरुक्त कोश जिसके अनुसरण से कर्मों का सरण/अपनयन होता है, वह सूत्र है। सिंचति खरइ' जमत्थं तम्हा सुत्तं निरुत्तविहिणा। (विभा १३६८) जो अर्थ का सिंचन क्षरण करता है, वह सूत्र है। सूत्र्यन्ते अनेनेति सूत्रम् । (स्थाटी प ४६) जिससे अर्थ सूत्रित/गुम्फित किया जाता है, वह सूत्र है। १६६६. सुत्त (सुप्त) पासुत्तसमं सुत्तं अत्थेणाबोहियं न तं जाणे । (बृभा ३१२) जो व्याख्या के बिना सुप्त की तरह सुप्त होता है, वह सुप्त/सूत्र है। १६७०. सुत्त (सूक्त) सुवुत्तमिइ वा भवे सुत्तं । (बृभा ३१०) सुष्ठूक्तत्वाद्वा सूक्तम् । जो सुभाषित है, वह सूक्त/सूत्र है । सुस्थितत्वेन व्यापित्वेन च सूक्तम् । (स्थाटी प ४६) जो व्यवस्थित और व्यापक अर्थ बोध देता है, वह सूक्त/ सूत्र है। १६७१. सुत्तफासिय (सूत्रस्पशिक) सुत्तं फुसतीति सुत्तफासिय। (निचू २ पृ २) ___जो सूत्र का स्पर्श अनुगमन करती है, वह सूत्रस्पशिक (व्याख्या) है। १६७२. सुदुल्लह (सुदुर्लभ) सुष्ठु दुर्लभः सुदुर्लभः। (उचू पृ १७६) __ जिसे पाना अत्यंत कठिन है, वह सुदुर्लभ है। १. पिंच-क्षरगे। (बृटी पृ६५) २. अर्थेन अबोधितं सुप्तमिव सुप्तं प्राकृतशैल्या सुत्तं । (बृटी पृ. ६४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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