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________________ ३१० निरुक्त कोश १६४०. सिंगार (शृङ्गार) शृग-सर्वरसेभ्यः परमप्रकर्षकोटिलक्षणमिति गच्छतीति शृगारः। (अनुद्वामटी प १२४) जो सब रसों में शृगस्थ/प्रधान है, वह शृगार (रस) है । १६४१. सिक्ख (शैक्ष) शिक्षामधीत इति शैक्षः। (स्थाटी प १२४) जो शिक्षा ग्रहण करता है, वह शैक्ष है। १६४२. सिक्खा (शिक्षा) सिक्खाते शिक्ष्यन्ते वा तमिति शिक्षा । (उचू पृ १६५) जो सिखाती है, वह शिक्षा है। जिससे विद्या का ग्रहण होता है, वह शिक्षा है । १६४३. सिक्खासोल (शिक्षाशील) शिक्षायां शीलः स्वभावो यस्य शिक्षा वा शीलयति-अभ्यस्यतीति शिक्षाशीलः। (उशाटी प ३४५) जिसका शील/स्वभाव शिक्षा प्राप्त करना है, वह शिक्षाशील जो शिक्षा का अनुशीलन/अभ्यास करता है, वह शिक्षाशील १६४४. सिज्जाकर (शय्याकर) सेज्जाकरणे सेज्जाकरो। (बृभा ३५२२) सिज्जं करेति तम्हा सो सिज्जाकरो। (निचू २ पृ १३१) जो शय्या/वसति का निर्माण करता है, वह शय्याकर है। १. 'शृंगार' का अन्य निरुक्तश्रयति एनं जनः शृंगारः । (अचि पृ ६६) प्रत्येक व्यक्ति जिसका आश्रय लेता है, वह शृंगार (रस) २. शिक्षा शीलमस्य शैक्षः। (अचि पृ १४) ३. शिक्ष्यते वर्णविवेकोऽनया शिक्षा । (अचि पृ६१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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