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________________ २८४ निरुक्त कोश १५०६. संधारणा (संधारणा) सं एगीभावम्मी, 'धी धरणे' ताणि एव भावेणं । धारेयत्थपयाणि तु, तम्हा संधारणा होति । (जीतभा ६५७) एक साथ धारणीय पदों को धारण करना संधारणा/ धारणा व्यवहार है। १५०७. संधि (सन्धि) सन्धीयते असो सन्धिः । (आटी प १३०) जिसका सन्धान किया जाता है, वह संधि कर्त्तव्यकाल है । १५०८. संधिचारि (सन्धिचारिन्) संधि चरति संधिचारी। (आचू पृ ३४६) जो संधि/विवर को देखता है, वह संधिचारी है। १५०६. संनिचय (सन्निचय) सम्यग् निश्चयेन चीयत इति सग्निचयः । (आटी प १३०) चीनी, द्राक्षा आदि का संग्रह सन्निचय है । १५१०. संनिहि (सन्निधि) सम्यग् निधीयत इति सन्निधिः । (आटी प १३०) विनाशशील द्रव्यों का सन्निधान संस्थापन सन्निधि है। १५११. संपणिवाय (संप्रणिपात) सम्यक-समीचीनतया प्रकर्षेण निपतनं-संप्रणिपातः । (प्रसाटी प १५) सम्यक् प्रकार से अत्यन्त झुक कर नमन करना संप्रणिपात १. अविनाशिद्रव्याणां अभयासितामृद्वीकादीनां सङ्ग्रहः सन्निचयः । (आटी प १३०) २. विनाशिद्रव्याणां दध्योदनादीनां संस्थापनं सन्निधिः । (आटी प १३०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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