SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७७ निरुक्त कोश १४६८. वेयय (वेदक) वेदयन्ति–निर्जरयन्ति उपभुञ्जन्तीति वेदकाः। (दटी प ७०) जो कर्मों का वेदन/निर्जरण या उपभोग करते हैं, वे वेदक १४६६. वेयरणी (वैतरणी) वेगेन तस्यां तरतीति वैतरणी। (सूचू १ पृ ६६) जिसमें वेग से तरा जाता है, वह वैतरणी (नदी) है । विरूपं तरणं प्रयोजनमस्या इति वैतरणी। (प्रसाटी प ३२२) जिसमें वि-तरण/प्रतिकूल तरण होता है, वह वैतरणी (नदी) है। १४७० वैयवि (वेदविद्) दुवालसंगं प्रवचनं वेदो, तं जे वेदयति स वेदवी । (आचू पृ १८५) जो वेद/द्वादशांग प्रवचन को जानता है, वह वेदविद् है । जीवादिपदत्थे वेदापयतीति वेदवी। (आचू पृ २३७) जो जीव आदि पदार्थों को समझाता है, वह वेदवित् है । १४७१. वयालिग (वैयालिक) व्यालैश्चरन्तीति वैयालिकाः । (प्रटी प ३७) जो व्याल/सों को दिखाकर आजीविका प्राप्त करते हैं, वे वयालिक/सपेरे हैं। १. 'वैतरणी' के अन्य निरुक्तविगततरणौ व्यर्के पाताले भवा वैतरणी । विगततरणिवितरणिविनौका ततः वैतरणी । (अचि पृ २४१) जो वितरणि सूर्यरहित नरक में होती है, वह वैतरणी (नदी) है । जो वितरणि नौका रहित है, वह वैतरणी (नदी) है । वितरणेन दानेन तीर्यते वैतरणी। विरुद्धं तरणं वितरणं तदस्यामस्तीति वैतरणी। (शब्द ४ पृ ५०६) जिसे वितरण/दान से तैरा जाता है, पार किया जाता है, वह वैतरणी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy