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________________ २४६ निरुक्त कोश १३००. लूह (रूक्ष) अंतपतेहि लूहेहि जीवंतीति लूहे। (दअचू पृ २३४) जो अंतप्रांत भोजन से जीवन यापन करता है, वह रूक्ष/ संयमी है। १३०१. लूहवित्ति (रूक्षवृत्ति) लूहं-संजमो तस्स अणुवरोहेण वित्ती जस्स सो लूहवित्ती। __ जो रूक्ष/संयम के द्वारा जीवन यापन करता है, वह रूक्षवृत्ति है। लूहदव्वाणि-चणगनिष्फावकोद्दवादीणि वित्ती जस्स सो लूहवित्ती। (दश्रुचू प १९१) जो रूक्ष भोजन से जीवन यापन करता है, वह रूक्षवृत्ति/ संयमी है। १३०२. लेसा (लेश्या) लेशयति-श्लेषयतीवात्मनि जननयनानीति लेश्या । (उशाटी प ६५०) जो दूसरों की आंखों को अपनी ओर आकृष्ट करती है, वह लेश्या/दीप्ति है। १३०३. लेसा (लेश्या) श्लेषयन्त्यात्मानमष्ट विधेन कर्मणा इति लेश्याः । (आवहाटी १ पृ १३) जो आत्मा को अष्टविध कर्म से श्लिष्ट करती है, वह लेश्या/आत्मपरिणाम विशेष है। १३०४. लोगेसणा (लोकैषणा) जं लोगो एसति सा लोगेसणा। (आचू पृ १३५) जिसकी लोग खोज/प्रार्थना करते हैं, वह लोकैषणा है । १. (क) कायाद्यन्यतमयोगवतः कृष्णादिद्रव्यसंबन्धादात्मनः परिणामाः लेश्याः । (आवहाटी १ पृ १३) (ख) कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात्परिणामो य आत्मनः। स्फटिकस्येव तत्रायं, लेश्याशब्दः प्रयुज्यते ॥ (उशाटी प ६५६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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