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________________ निरुक्त कोश जो परिहार तप का आचरण करते हैं, वे पारिहारिक (मुनि) हैं। १०५७. पाली (पाली) पालयतीति उवस्सयं तेण होति सा पालो। (बृभा ३७०६) जो उपाश्रय/प्रवासस्थल का पालन/रक्षण करती है, वह पाली/स्थविरा है। १०५८. पाव (पाप) पासयति पातयति वा पापम् । (उचू पृ १५२) पाशयति-गुण्डयत्यात्मानं पातयति चात्मन आनन्दरसं शोषयति क्षपयतीति पापम् । (स्थाटी प १६) जो आत्मा को बांधता है, वह पाप है । जो नीचे गिराता है, वह पाप है। जो आत्मा के आनन्दरस का क्षय करता है, वह पाप है। १०५९. पावग (प्रापक) सुराणं पावयतीति पावकः। (दअचू पृ १५०) . जो पावक/हव्य को देवताओं तक पहुंचाती है, वह प्रापक/ अग्नि है। १०६०. पावग (पावक) पाप एव पापकस्तं प्रभूतसत्त्वापकारित्वेनाशुभम् । (दटी प २०१) जो अनेक प्राणियों की घातक है, वह पापक/अग्नि है। १. 'पाप' का अन्य निरुक्तपाति रक्षति अस्मादात्मानमिति पापम् । (शब्द ३ पृ ११६) आत्मा को जिससे बचाया जाता है, वह पाप है। २. 'पावक' का अन्य निरुक्त पुनाति पावकः । (अचि पृ २४४) . जो पवित्र करता है, वह पावक/अग्नि है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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