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________________ १६८ निरुक्त कोश १०४५. पाणि (प्राणिन्) दुःखेनाभिभूतास्त्रस्यन्ति-उद्विजन्ति प्राणा इति प्राणिनः । (आटी प ७१) दुःख से जिनके प्राण कांप उठते हैं, वे प्राणी हैं। १०४६. पाणिज्जा (प्राणिपेया) तडत्थेहि हत्थेहि पेज्जा पाणिज्जा। (दअचू पृ १७४) वह तालाब या नदी, जिसके तट पर बैठ कर प्राणी पाणि हाथ से पानी पी लेते हैं, वह पाणिपेज्जा या प्राणिपेया नदी है। १०४७. पायच्छित्त (प्रायश्चित्त) पावं छिदति जम्हा, पायच्छित्तं त्ति भण्णते तेणं । (आवनि १५०८) जो पाप का छेदन करता है, वह प्रायश्चित्त है। १०४८. पायरास (प्रातराश) पादे आसणं पातरासणं। (आचू पृ ७७) जिसको प्रात: खाया जाता है, वह प्रातराश है । १०४६. पायव (पादप) पादेहिं पिबंति पालिज्जंति वा पायवा। (दअचू पृ ७) जो पाद/मूलद्वारा जलग्रहण करते हैं, वे पादप हैं । जिनका पालन/पोषण पाद/जड़ों से होता है, वे पादप हैं । १०५०. पारंगम (पारङ्गम) पारः-तटः परकूलं तद्गच्छन्तीति पारङ्गमाः। (आटी प १२३) . जो पार/तट पर पहुंच जाते हैं, वे पारंगम हैं । १०५१. पारंचिअ (पाराञ्चिक) पारं-तीरं तपसा अपराधस्याञ्चति–गच्छति ततो दीक्ष्यते यः स १. (क) पा पाणे धातुः रक्खणे वा, पाया—मूला पिज्जति तेसु तेसु. कारणेसु । (दअच पृ ७) (ख) पादैर्मूलैः पिबति पादपः । (अचि पृ २४८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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