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________________ १७४ निरुक्त कोश जो तत्काल / वर्तमान में उत्पन्न होता है, वह प्रत्युत्पन्न है । प्रति प्रति वोत्पन्नं प्रत्युत्पन्नम् । ( आवहाटी १ पृ १८९ ) जो व्यक्ति व्यक्ति में भिन्न रूप से उत्पन्न होता है, वह प्रत्युत्पन्न है । ६०३. पच्छण्णपडिसेवि (प्रच्छन्नप्रतिसेविन् ) प्रच्छन्नं प्रतिसेवत इति प्रच्छन्नप्रतिसेवी । ( स्थाटी प २११ ) जो छिप छिप कर दोषों की प्रतिसेवना करता है, वह प्रच्छन्नप्रतिसेवी है | ०४. पच्छाणुपुव्वि (पश्चानुपूर्विन् ) पाश्चात्यः ---- - चरमस्तस्मादारभ्य व्यत्ययेनैवानुपूर्वी - परिपाटिः विरच्यते यस्यां स पश्चानुपूर्वी । ( अनुद्वामटी प ६७ ) जो पाश्चात्य / अंतिम बिंदु से प्रारंभ होकर उल्टेरूप में क्रम निर्धारित करता है, वह पश्चानुपूर्वी है । ०५. पच्छित ( प्रायश्चित्त) पायेण वा वि चित्तं सोहयई तेण पच्छित्तं । ( जीतभा ५ ) प्रायः बाहुल्येन चित्तं - जीवं शोधयति मूलोत्तरगुणविषयातीचारजनितकर्ममलमलिनं निर्मलं करोतीति प्रायश्चित्तम् । ( प्रसाठी प ६७ ) जो प्रायः चित्त का शोधन कर देता है, वह प्रायश्चित्त है । . १०६. पजणण ( प्रजनन ) प्रजन्यते अनेनेति प्रजननं । ०७. पजा (प्रजा) ( सूचू १ पृ १०२ ) जिसके द्वारा पैदा किया जाता है वह प्रजनन / शिश्न है । प्रकर्षेण जायते पाकनिष्पत्तिरस्यामिति प्रजा । है । Jain Education International (व्यभा ६ टी प ४) जिसमें प्रकृष्ट रूप से अन्न आदि पकता है, वह प्रजा / चुल्ही For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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