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________________ १७० निरुक्त कोश ८८२. पएस (प्रदेश) प्रकृष्टो-निरंशो देशः प्रदेशः । (स्थाटी प २२) जो वस्तु का प्रकृष्ट/अविभाज्य देश/विभाग है, वह देश/ अवयव विशेष है। प्रकर्षेण सूक्ष्मा तिशयलक्षणेन दिश्यन्ते-कथ्यन्ते इति प्रदेशाः। (उशाटी प २५) जो अत्यंत सूक्ष्म कहे जाते हैं, वे प्रदेश हैं। ८८३. पओग (प्रयोग) प्रकर्षेण युज्यत इति प्रयोगः। (आटी प ६३) जो प्रकर्ष/सघनता से किया जाता है, वह प्रयोग है। ९८४. पंक (पङ्क) पतंत्यस्मिन्निति पंकः । (उचू पृ ७६) जिसमें प्राणी गिर जाते हैं, वह पंक कीचड़ है। पङ्कयतीति पङ्कः। (सूटी २ प ७४) जो पंकिल बनाता है, वह पंक है । ८८५. पंचम (पञ्चम) पञ्चानां षड्जादिस्वराणां निर्देशक्रममाश्रित्य पूरणः पञ्चमः । षड्ज आदि स्वर-क्रम में जो पञ्चम स्थान की पूर्ति करता है, वह पञ्चम (स्वर) है। पञ्चसु-नाभ्यादिस्थानेषु मातीति पञ्चमः (स्वरः)।' (अनुद्वामटी प ११७) १. 'पंक' का अन्य निरुक्त-- पञ्चयते विस्तार्यते जलेन पङ्कः। (अचि पू २४२) ___ जो जल के द्वारा विस्तृत होता है, वह पंक कीचड़ है। १. वायुसमुद्धतो नाभेरुरोहत्कण्ठमूद्ध सु । विचरन् पञ्चमस्थानमाप्त्या पञ्चम उच्यते ॥ प्राणोऽपानः समानञ्च उदानो व्यान एव च । एतेषां समवायेन जायते पञ्चमः स्वरः। (वा पृ ४१८६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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