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________________ ( १७ ) अर्थ में भिन्नता है, उनका अनुक्रम अलग-अलग है, जैसे – आदाण ( १७९), आदाण (१८०), आयाण (२१०), आयाण (२११) आदि । एक ही तात्पर्यार्थ के अनेक शब्द, जिनका प्राकृत और संस्कृत रूप भिन्न-भिन्न है, उनका अनुक्रम भी एक साथ नहीं है, जैसे- अरिह (अर्हत् ), अरहंत ( अरथान्त), आवस्स (आवश्यक), आवासय ( आवासक ) आदि । निरुक्त कोश को समृद्ध बनाने की दृष्टि से पाद-टिप्पणों में अनेक निरुक्तों का समावेश किया गया है । मूल अर्थ को स्पष्ट करने के लिए यत्रतत्र आगम के व्याख्या ग्रन्थों के संदर्भ हिन्दी अनुवाद सहित दिए गए हैं, जैसे - आयरिय, आवासय, आसायणा आदि । आगम व्याख्या ग्रन्थों के अतिरिक्त इस ग्रन्थ में संस्कृत, पाली के अनेक कोशों तथा व्याकरणों का उपयोग पाद-टिप्पण में किया गया है। मूल निरुक्त के संवादी तथा भिन्नार्थ वाले अन्यान्य निरुक्तों का निर्देश किया गया है। अर्थ की स्पष्टता के लिए अनेक स्थलों में धातुओं का निर्देश भी है । निरुक्तों के प्रकार वैयाकरणाचार्यों ने निरुक्त के पांच प्रकार बताए हैं । वे सभी प्रस्तुत ग्रंथ में सोदाहरण उपलब्ध हैं, यथा १. वर्णागम - वे निरुक्त जिनमें वर्ण का आगम होता है । यथाहंस | 'हसतीति हंसः । ' २ वर्णविपर्यय- वे निरुक्त जिनमें वर्ण का विपर्यय होता है । यथासिंह | 'हिनस्तीति सिंहः ।' ३. वर्णविकार – वे निरुक्त जिनमें वर्ण में विकार उत्पन्न होता है । यथा- - विपाक | 'विपचनं विपाकः ।' ४. वर्णनाश - वे निरुक्त जिनमें वर्ण नष्ट होते हैं । यथा - ओदन | उदत्ति तमिति ओदनम् । ५. धात्वर्थातिशय- वे निरुक्त जो धातु के अर्थ की विशिष्टता प्रकट करते हैं । यथा— भ्रमर । 'भ्रमति च रौति च भ्रमरः । ' उपर्युक्त वर्गीकरण के अतिरिक्त प्रस्तुत कोश में संगृहीत निरुक्तों को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है १. व्युत्पत्तिजन्य २. पारिभाषिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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