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________________ निरुक्त कोश ५१२. गुम्मिय (गौल्मिक) गुल्मेन समुदायेन संचरन्तीति गौल्मिकाः। (व्याभा ३ टी प ६७) जो गुल्म/समूह रूप में भ्रमण करते हैं, वे गौल्मिक/नगररक्षक हैं। ५१३. गुरु (गुरु) गृणंति शास्त्रार्थमिति गुरवः। (उचू पृ २) जो शास्त्रों के अर्थ का कथन करते हैं, वे गुरु हैं। गीर्यते वा गुरुः। __(उचू पृ १६१) जिसकी स्तुति की जाती है, वह गुरु है । ५१४. गुरुपरिभासय (गुरुपरिभाषक) ____ गुरून् परिभाषते-विवदते गुरुपरिभाषकः। (उशाटी प ४३४) ____ जो गुरु से परिभाष/विवाद करता है, वह गुरुपरिभाषक है । ५१५. गेय (गेय) ___ गेयं णाम यद् गीयते सरसंचारेण । (सूचू १ पृ ४) जो स्वर-संचार के द्वारा गाया जाता है, वह गेय है । ५१६. गेविज्ज (अवेयक) ग्रोवेव ग्रीवा लोकपुरुषस्य त्रयोदशरज्जूपरिवर्तीप्रदेशस्तस्मिन्निविष्टतयाऽतिभ्राजिष्णुतया च तदाभरणभूता नैवेयाः ।। (उशाटी प ७०२) जो लोकपुरुष में ग्रीवा स्थानीय हैं तथा अत्यन्त दीप्त होने से आभूषण की भांति शोभित हैं, वे ग्रैवेय/देवों के आवास हैं। १. 'गुरु' का अन्य निरुक्त गिरत्यज्ञानं गुरुः । (वा पृ २६१३) __जो अज्ञान का नाश करता है, वह गुरु है । (गृ-गिरणे, शब्दे) २. लोकपुरुषस्य ग्रीवाप्रदेशविनिविष्टा ग्रीवाभरणभूता अवेयकाः । (अचि पृ १६) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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