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________________ 28 निरुक्त कोश ४६३. खुइय (क्षुत्) खुत्ति कतं तं खुइतं ।' (जीतभा ६०७) जिसमें छीत्कार किया जाता है, वह क्षुत् / छींक है। ४६४. खुड्ड (क्षुद्र) क्षुणतीति क्षुद्रः। (उचू पृ २६) ___जो क्षुद्रता/तुच्छता करता है, वह क्षुद्र है । ४६५. खेड (खेट) खेट्यन्ते----उत्त्रास्यन्तेऽस्मिन्नेव स्थितैः शत्रव इति खेटम् । (उशाटी पृ ६०५) जिसमें स्थित हो शत्रुओं को त्रसित भयभीत किया जाता है, वह खेट है। ४६६. खेत्त (क्षेत्र) क्षितो त्राणं क्षेत्र। (आवचू १ पृ ३७०) जो ग्राम को त्राण देता है, वह क्षेत्र/खेत है । क्षीयत इति क्षेत्रं ।' (उचू पृ २०६) जो अवकाश देता है, वह क्षेत्र है। क्षियन्ति--निवसन्त्यस्मिन्निति क्षेत्रम् । (उशाटी प १८८) जिसमें निवास किया जाता है, वह क्षेत्र है। १. क्षवणं क्षुत् । (अचि पृ १०६) २. क्षितः ग्रामः। (धातु पृ २५१) ३. 'क्षेत्र' के अन्य निरुक्त क्षयन्त्यत्र धान्यानि क्षेत्रम् । जहां धान्य उत्पन्न होता है, वह क्षेत्र है। क्षीयते-हलैहिस्यते वा क्षेत्रम् । (अचि पृ २१३) जो हलों द्वारा क्षुण्ण होता है, वह क्षेत्र है। ४. क्षि-निवासगत्यो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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