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________________ ७८ निरुक्त कोश ४०५. कारग (कारक) क्रियां करोतीति कारकः। (नंचू पृ८) जो क्रिया करता है, वह कारक है। कारयतिति कारकः। (प्रसाटी प २८३) जो कराता है, वह कारक है । ४०६. काल (काल) कलनं-समस्तवस्तुस्तोमस्य संख्यानमिति कालः।' (प्रसाटी प २८९) जिससे समस्त पदार्थों का कलन/ज्ञान होता है, वह काल है । कलयन्ति-परिच्छिन्दन्ति वस्तु तस्मिन् सतीति कालः। ' (विभामहेटी १ पृ ७१५) जिसके होने पर वस्तु के परिच्छेद/पृथक् अस्तित्व का बोध होता है, वह काल है। कलयन्ति-समयोऽस्यानेन रूपेणोत्पन्नस्यावलिकामुहूर्तादि वा । जिससे समय, आवलिका, मुहूर्त आदि की कलना/गणना होती है, वह काल है। ४०७. कालकंखि (कालकांक्षिन्) कालं काङ्क्षतीति कालकंखी । (सूचू १ पृ २०४) जो काल मरण की कांक्षा करता है, वह कालकांक्षी है। ४०८. कालिय (कालिक) काले-प्रथमचरमपौरुषीद्वये पाठ्यत इति कालिकं । (आवहाटी १ पृ १९०) जो प्रथम और चतुर्थ पौरुषी में पढ़ा जाता है, वह कालिक (श्रुत) है। १. 'काल' का अन्य निरुक्त :कालयति -क्षिपति सर्वभावान् कालः। (अचि पृ २६) कलनात् सर्वभूतानां स कालः परिकीर्तितः। (वा पृ १७७६) जो सबको अपना ग्रास बनाता है, वह काल/समय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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