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________________ निरुक्त कोश ७५ ३९३. कल्लाण (कल्याण) कल्यमानयतीति कल्याणम् ।। (उचू पृ ४१) कल्यः-अत्यन्तनीरुक्तया मोक्षस्तमानयति अणति-प्रज्ञापयतीति कल्याणः। (उशाटी प १२८) जो कल्य/मुक्ति/सुख/आरोग्य प्रदान करता है, वह कल्याण है। ३६४. कल्लाण (कल्याण) कल्लमणइ ति गच्छइ गमयइ व बुज्झइ व बोहयइ व त्ति । भणइ भणावेइ व जं तो कल्लाणो स चायरिओ॥ (विभा ३४४१) ___ जो स्वयं कल्य आरोग्य मोक्ष को प्राप्त करते हैं, मोक्ष-मार्ग को जानते हैं, उसका प्रतिपादन करते हैं तथा दूसरों को कल्य प्राप्त कराते हैं, ज्ञात कराते हैं और उसका प्रतिपादन करने के लिए प्रेरित करते हैं, वे कल्याण/गुरु/आचार्य हैं। अहवा कल सइत्थो संखाणत्यो य तस्स कल्लं ति । सदं संखाणं वा जमणइ तेणं च कल्लाणो। (विभा ३४४२) __ जो कल्य/शब्द-शास्त्र/व्याकरण तथा कल्य/गणित-शास्त्र के ज्ञाता हैं, वे कल्याण आचार्य हैं। ३९५. कवित्थ (कपित्थ) कपिरिव लम्बते त्थेति च करोति कपित्थं । (अनुद्वा ३६८) जो कपि बंदर की तरह लटकता हुआ रहता है, वह कपित्थ कैथ है। १. कल्यते धार्यते कल्याणम । कल्यं-नीरुजत्वमणतीति वा (कल्याणम्) । (अचि पृ १५) २. 'कपित्थ' के अन्य निरुक्त । कपयोऽस्मिन् तिष्ठन्ति कपित्थः, कपिप्रियत्वात् कपिरिव तिष्ठतीति वा । (अचि पृ २५८) जहां कपि रहते हैं, वह कपित्थ (वृक्ष) है। जो कपि को प्रिय है, वह कपित्थ (वृक्ष) है। (जिसके फल) कपि की तरह स्थित हैं, वह कपित्थ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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