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________________ ७० गया है - ( १ ) सात्त्विक, (२) राजस और ( ३ ) तामस । सात्विक अहंकार से इन्द्रियों के अधिष्ठाता देवता और मन की उत्पत्ति हुई । राजस अहङ्कार से दस इन्द्रियाँ हुईं । तामस अहङ्कार से सूक्ष्म पञ्चभूत उत्पन्न हुए। वेदान्त के मत में यह अभिमानात्मक अन्तःकरण की वृत्ति है। अहं यह अभिमान शरीरादि विषयक मिथ्या ज्ञान कहा गया है । व्यूह सिद्धान्त में विष्णु के चार रूपों में अनिरुद्ध को अहङ्कार कहा गया है। सांख्य दर्शन में दो मूल तत्व हैं जो बिल्कुल एक दूसरे से स्वतन्त्र हैं - १. पुरुष ( आत्मा ) और २. प्रकृति (मूल प्रकृति अथवा प्रधान ) । प्रकृति तीन गुणों से युक्त है - तमस्, रजस् एवं सत्त्व । ये तीनों गुण प्रलय में संतुलित रूप में रहते हैं, किन्तु जब इनका सन्तु लन भंग होता है ( पुरुष की उपस्थिति के कारण ) तो प्रकृति से 'महान् ' अथवा बुद्धि की उत्पत्ति होती है, जो सोचने वाला तत्व है और जिसमें 'सत्व' की मात्रा विशेष होती है। बुद्धि से 'अहङ्कार' का जन्म होता है, जो 'व्यक्तिगत विचार' को जन्म देता है । अहङ्कार से मनस् एवं पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ उत्पन्न होती हैं । फिर पाँच कर्मेन्द्रियों तथा पाँच तन्मात्राओं की उत्पत्ति होती है। अह (अन्) - दिन दिवस इसके विभागों के भिन्न-भिन्न मत हैं- उदाहरण के रूप में द्विपा, त्रिषा, चतुर्षा पञ्चधा, अष्टधा अथवा पञ्चदशधा । दो तो मुख्य हैं : पूर्वाह्न तथा अपराह्न (मनुस्मृति ३.२७८) तीन विभाग भी प्रचलित है। चार भागों में भी विभाजन गोभिल गृह्यसूत्र में वर्णित है -१. पूर्वाह्न (१३ पहर), २. मध्याह्न ( एक पहर ), ३. अपराह्न (तीसरे पहर के अन्त तक और इसके पश्चात् ), ४. सायाह्न ( दिन के अन्त तक ) | दिवस का पञ्चधा विभाजन देखिए ऋग्वेद ( ७६.३ युतायातं सङ्गवे प्रातराह्नी) पांच में से तीन नामों यथा प्रातः, सजन तथा मध्यन्दिन का स्पष्ट उल्लेख मिलता है । दिवस का आठ भागों में विभाजन कौटिल्य (१.१९), वक्षस्मृति ( अध्याय २) तथा कात्यायन ने किया है। कालिदास कृत विक्रमोर्वशीय (२.१) के प्रयोग से प्रतीत होता है कि उन्हें यह विभाजन ज्ञात था । दिवस तथा रात्रि के १५,१५ मुहूर्त होते हैं। देखिए वृहद्योगयात्रा, ४.२-४ (पन्द्रह मुहतों के लिए) । 1 भूमध्य रेखा को छोड़कर भिन्न-भिन्न ऋतुओं में भिन्न Jain Education International अहः (अन) - अहिंसा भिन्न स्थानों में जैसे-जैसे रात्रि-दिवस घटते-बढ़ते हैं, वैसे-से उन्हीं स्थानों पर मुहूर्त का काल भी पटता बढ़ता है। इस प्रकार यदि दिन का विभाजन दो भागों में किया गया हो तब पूर्वाह्न अथवा प्रातःकाल ७३ मुहूर्त का होगा। यदि पाँच भागों में विभाजन किया गया हो तो प्रातः या पूर्वाह्न तीन मुहूर्त का ही होगा । माधव के कालनिर्णय ( पृ० ११२ ) में इस बात को बतलाया गया है कि दिन को पाँच भागों में विभाजित करना कई वैदिक ऋचाओं तथा स्मृतिग्रन्थों में विहित है, अतः यही विभाजन मुख्य है । यह विभाजन शास्त्रीय विधिवाचक तथा निषेधार्थक कृत्यों के लिए उल्लिखित है। दे० हेमाद्रि, चतुर्वर्गचिन्तामणि, काल भाग, ३२५ - ३२९ वर्षकृत्यकौमुदी, पृ० १८-१९; कालतत्त्वविवेचन, पृ० ६, ३६७ । अहल्या- गौतम मुनि की भार्या, जो महासाध्वी थी । प्रातःकाल उसका स्मरण करने से महापातक दूर होना कहा गया है अहल्या द्रौपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा । पञ्चकन्याः स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥ [ अहत्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा, मन्दोदरी इन पाँच कन्याओं ( महिलाओं ) का प्रातःकाल स्मरण करने से महापातक का नाश होता है। ] कृतयुग में इन्द्र ने गौतम मुनि का रूप धारण कर अहल्या के सतीत्व को नष्ट कर दिया। इसके बाद गौतम के शाप से वह पत्नी शिला हो गयी। त्रेतायुग में श्री रामचन्द्र के चरण स्पर्श से शापविमुक्त होकर पुनः पहले के समान उसने मानुषी रूप धारण किया । दे० वाल्मीकिरामायण, बालकाण्ड अहल्या मैत्र यी व्यावहारिक रूप में यह एक रहस्यात्मक संज्ञा है, जिसका उद्धरण अनेक ब्राह्मणों ( शतपथ ब्राह्मण, ३.३,४,१८, जैमिनीय ब्रा०, २.७९, षड्विंश ब्रा०, १.१ ) में पाया जाता है । यह उद्धरण इन्द्र की गुणावलि में से, जिसमें इन्द्र को अहल्याप्रेमी ( अहल्यायै जार) कहा गया है, लिया गया है। अहिंसा -- सभी सजीव प्राणियों को मनसा, वाचा, कर्मणा दुःख न पहुंचाने का भारतीय सिद्धान्त इसका सर्वप्रथम प्रतिपादन छान्दोग्य उपनिषद् (२.१७) में हुआ है एवं अहिंसा को यज्ञ के एक भाग के समकक्ष कहा गया है । वैदिक साहित्य में यत्र-तत्र दया और दान देव और मानव For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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