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________________ हूँ-हैमवती हूँ — तन्त्रशाखा के ग्रन्थों का एक बीजाक्षर, जो उग्रता का सूचक है । हकारो नाम कर्णादयो नादबिन्दूविभूषितः । कूर्चं क्रोध उग्रदर्पो दीर्घहङ्कार उच्यते ॥ शिखावषट् च कवचं क्रोधो वर्म हमित्यपि । क्रोधाख्यो हूँ तनुत्रञ्च शस्त्रादौ रिपुसंज्ञकः ॥ हृदय विधि - सूर्यदेव के सुप्रसिद्ध स्तोत्र 'आदित्यहृत्य' के पाठ करने का विधान, जिसमें पूजा, जय, व्रत का भो समावेश है । हृषीकेश - विष्णु का नाम, हृषीक ( इन्द्रियों) के ईश (स्वामी) । शङ्कराचार्य (गीताभाष्य ) के अनुसार " क्षेत्रज्ञरूपकत्वात् परमात्मत्वाद्वा इन्द्रियाणि यद्वशे वर्तन्ते स परमात्मा ।" पौराणिकों के अनुसार 'हृष्य: जगत्प्रीतिकरा केशाः रश्मयो यस्य स हृषीकेश:' ( जगत् को प्रसन्न करने वाली हैं रश्मियाँ जिसकी ) अर्थात् सूर्यचन्द्ररूप भगवान् । महाभारत के मोक्षधर्म पर्व में कहा गया है : सूर्याचन्द्रमसोः शश्वत् अंशुभिः केशसंज्ञितः । बोधयत् स्वापयच्चैव जगदुद्भिद्यते पृथक् ॥ बोधनात् स्वापनाच्चैव कर्मभिः पाण्डुनन्दन । garbaseमीशानो वरदो लोकभावनः ।। दे० वाराह पुराण, रुरुक्षेत्र हृषीकेष महिमानाम अध्याय; कूर्म पुराण अध्याय २७ । हेमाद्रि - मध्यकालीन धर्मशास्त्र निबन्धकारों में हेमाद्रि का स्थान बहुत ऊँचा है । ये बहुत बड़े लेखक और शास्त्रकार थे । इन्होंने चतुर्वर्ग चिन्तामणि की रचना की जो धार्मिक क्रियाओं और व्रतों का विश्वकोश है । इस ग्रन्थ के एक उल्लेख से विदित होता है कि इन्होंने इस महाकाव्य ग्रन्थ को पाँच खण्डों में लिखने का निश्चय किया था। ये खण्ड थे व्रत, दान, तीर्थ, मोक्ष और परिशेष । परिशेष भी चार भागों में विभक्त था — देवता, काल निर्णय, कर्मविपाक और लक्षण समुच्चय । इस महाग्रन्थ का जितना अंश प्रकाशित हो चुका है उसमें व्रत, दान, श्राद्ध और काल का निरूपण है। तीर्थ और मोक्ष सम्बन्धी अंश अभी तक प्रकाशित नहीं हो पाया है। हेमाद्रि धर्मशास्त्र के अतिरिक्त मीमांसाशास्त्र के भी बहुत बड़े थे | अपने ग्रन्थ में इन्होंने धर्म और Jain Education International ७०५ दर्शन के अवतरणों द्वारा अपने प्रकाण्ड पाण्डित्य का प्रदर्शन किया है । चतुर्वर्गचिन्तामणि के कुछ उल्लेखों से हेमाद्रि के जीवन पर भी प्रकाश पड़ता है । ये वत्सगोत्रीय थे, पिता का नाम कामदेव और पितामह का नाम वासुदेव था | देवगिरि के यादव राजा महादेव के करणाधिकारी ( कार्यालय के प्रमुख अध्यक्ष ) तथा सम्मान्य मन्त्री थे । इनका जीवन काल तेरहवी शती का उत्तरार्द्ध और चौदहवीं का पूर्वार्द्ध था । ये बड़े दानी और उदार थे : लिपि विधात्रा लिखितां जनस्य भाले विभूत्या परिमृज्य दुष्टाम् । कल्याणिनीमेष लिखत्यैनां चित्र प्रमाणीकुरुते विधिश्च ।। ( हेमाद्रि, १.१५ ३.१.१७) [ विधाता द्वारा दरिद्र जनों के ललाट पर जो दरिद्रता की रेखा लिख गयी थी, उस दुष्ट लेख को अपने दान द्वारा मिटाकर ये कल्याणी रेखा लिखते थे । विचित्र तो यह है कि ब्रह्मा इसका प्रमाणीकरण भी कर देते हैं ] चतुर्वर्गचिन्तामणि ( दानखण्ड ) में इनके सम्बन्ध में ये उदात्त श्लोक पाये जाते हैं : महादेवस्य हेमाद्रिः सर्वश्रीकरणप्रभुः । निजोदारतया यस्य सर्वश्रीकरणप्रभुः ॥ अनेन चिन्तामणिकामधेनु कल्पद्रुमानर्थजनाय दत्तान् । विलोक्य शङ्के किममुष्य सर्वगीर्वाणनाथोऽपि कर प्रदोऽभूत् ॥ अथामुना धर्मकथा दरिद्र त्रैलोक्यमालोक्य कलेर्बलेन । तस्यापकारे दधतानुचिन्तां चिन्तामणिः प्रादुरकारि चारु ।। हेरम्ब - गणेश का पर्याय । इनका मन्त्र निम्नांकित है । पञ्चान्तको विन्दुयुक्तो वामकर्णविभूषितः । तारादिहृदयान्तोऽयं हेरम्बमनुदीरितः ॥ चतुर्वर्णात्मको नॄणां चतुर्वर्गफलप्रदः ॥ ध्यान इस प्रकार है : पाशाङ्कुशी कल्पलतां विषाण दधत्स्वशुण्डाहितबीजपूरः । रक्तस्त्रिने स्तरुणीन्दुमौलिर्हारोज्ज्वलो हस्तिमुखोऽवताद्वः ॥ हैमवती - पार्वती, हिमवान् ( हिमालय ) की पुत्री । देवीभागवत (१२.८.५७) में कहा है, "उमाभिधानां पुरतो देवीं हैमवतीं शिवाम् ।" For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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