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________________ ७०४ में से किसी एक को अवश्य मानना चाहिए। दूसरे, ईश्वर पर विश्वास रखना हिन्दू के लिए वांछनीय है किन्तु अनिवार्य नहीं यदि वह कोई धर्म, परमार्थ अथवा दार्श निक दृष्टिकोण मानता है तो हिन्दू होने के लिए पर्याप्त है। जहाँ तक धार्मिक साधना अथवा व्यक्तिगत मुक्ति का प्रश्न है, हिन्दू के लिए अनन्त विकल्प हैं, यदि वे उसके विकास और चरम उपलब्धि में सहायक होते हैं। नैतिक जीवन में वह जनकल्याण के लिए समान रूप से प्रतिबद्ध हैं इष्ट (यश) पूर्त ( लोककल्याणकारी कार्य ) कोई भी वह कर सकता है । सदाचार ही धर्म का वास्तविक मूल माना गया है ( आचार प्रभवो धर्मः ); इसके बिना तो वेद भी व्यर्थ हैं आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः यद्यप्यधीताः सह परि छन्दास्येनं मृत्युकाले त्यजन्ति नीदं शकुन्ता इव जातपक्षाः ॥ ( वसिष्ठ स्मृति) , [ आचारहीन व्यक्ति को वेद पवित्र नहीं करते चाहे वे छः अङ्गों के साथ ही क्यों न पढ़े गये हों । मृत्युकाल में मनुष्य को वेद वैसे ही छोड़ देते हैं, जैसे पंख उगने पर पक्षी घोंसले को। ] हिमपूजा पूर्णिमा को चन्द्रमा का जो भगवान् विष्णु का वाम नेत्र है, पुष्पों, दुग्ध के नैवेद्य से पूजन करना चाहिए। गौओं को लवण दान करना चाहिए। मां बहिन तथा पुत्री को रक्त वस्त्र देकर सम्मान करना चाहिए । यदि व्रती हिम (बर्फ) के समीप हो तो उसे अपने पितृगणों को हिम के साथ मधु, तिल तथा घी का दान करना चाहिए । यदि हिम का अभाव हो तो मुख से केवल 'हिम', 'हिम' शब्द का उच्चारण करते हुए ब्राह्मणों को घृत से परिपूर्ण उरद से बने खाद्य पदार्थ खिलाने चाहिए । नृत्य, गायन, वादन के साथ उत्सव का आयोजन किया जाय तथा श्यामा देवी का पूजन हो । 1 हिरण्यकशिपु - एक दैत्य का नाम इसकी कथा संक्षेप में इस प्रकार है। कश्यप का पुत्र हिरण्यकशिपु उसकी दिति पत्नी से उत्पन्न हुआ था । उसका सहोदर हिरण्याक्ष और भार्या कयाधु थी । इसके पुत्रों के नाम संह्राद, अनुहाद, हाद और प्रह्लाद थे। इसकी कन्या का नाम सिंहिका था । यह विष्णु का विरोधी था । इसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु का भक्त था इसलिये इसने अपने पुत्र Jain Education International हिमपूजा को बहुत सताया और विविध प्रकार की यातनायें दीं । इसका वध करने के लिये विष्णु भगवान् ने नृसिंह अवतार धारण किया और अपने भयंकर नाखूनों द्वारा इसके उदर को विदीर्ण कर इसको मार डाला। दे० 'नृसिंहावतार' । 1 हिरण्य कामधेनु हिरण्य अथवा स्वर्ण की बनी हुई कामधेनु । षोडश महादानों में इसकी गणना है । मत्स्यपुराण ( अध्याय २५३ ) में इसके दान का विस्तार के साथ वर्णन है। हिरण्यगर्भ ब्रह्मा देवता सृष्टि के आदि में नारायण की प्रेरणा से ब्रह्माण्ड का आरम्भिक रूप सुवर्ण जैसा प्रकाशमान गोलाकार प्रकट हुआ था। उसके फिर ऊर्ध्व और अधः दो भाग हो गये और उनके बीच से ब्रह्माजी प्रकट हुए दे० भागवत पुराण । हिरण्याक्ष - दैत्य विशेष का नाम जिसकी आँखें सोने की अथवा सोने की तरह पीली हों वह हिरण्याक्ष है । यह दिति से उत्पन्न कश्यप का पुत्र था। पुराकथा के अनुसार इसने पृथ्वी का अपहरण कर विष्टा के परकोटे के भीतर रखा था। विष्णु ने वाराह अवतार के रूप में परकोटे का भेदन कर इसका वध तथा पृथ्वी का उद्धार किया । हिरण्याश्व तुलापुरुषादि षोडश महादानों में एक विशेष दान | दे० मत्स्य पुराण, (अध्याय २८० ) । हिरण्याश्वरथ पोडश महादानों में एक विशेष दान षोडश महादानों की गणना इस प्रकार है : । आद्यन्तु सर्वदानानां तुलापुरुषसंज्ञितम् । हिरण्यगर्भदानञ्च ब्रह्माण्डं तदनन्तरम् ॥ कल्पपादप दानञ्च गोसहस्रञ्च पञ्चमम् । हिरण्यकाधेनुञ्च हिरण्याश्वस्तथैव च ।। पञ्चाङ्गल धरादानं वय च । हिरण्याश्वदथस्तद्वत् हेमहस्तिरथस्तथा ॥ द्वादशं विष्णुचक्रञ्च ततः कल्पलतात्मकम् । सप्तसागरदानञ्च रत्ननुणस्तथैव च ।। महाभूतघटस्तद्वत् षोडशः परिकीर्तितः ॥ हुताश, हुताशन - अग्नि । इसका शाब्दिक अर्थ है 'हुत ( हविष्य ) है अशन (भोजन) जिसका ' । - गन्धर्व विशेष इसका संगीत से सम्बन्ध है । दे० 'हाहा' । -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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