SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 662
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४८ ( प्रथम खण्ड, द्वितीय पटल ) में संकल्प का निम्नांकित विधान है सदूर्गञ्च सतिलं जलपूरितम् । सकुशञ्च फलदेवि गृहीत्वाचम्य गृहीत्वाचम्य कल्पतः ।। अभ्यर्च्य च शिरःपद्म श्रीगुरुं करुणामयम् । यक्षेशवदनो वापि देवेन्द्रवदनोऽपि वा ॥ मासं पक्ष तिथिञ्चैव देवपर्वादिकन्तथा । आद्यन्तकालञ्च तथा गोत्रं नाम च कामिनाम् ॥ क्रियाह्वयं करिष्येऽन्तमेनं समुत्सृजेत् पयः ॥ सङ्कल्पनिराकरण चौदह शेव सिद्धान्तशास्त्रों (प्रत्थों ) में से एक। इसके रचयिता उमापति शिवाचार्य तथा रचनाकाल चौदहवीं शती है। उमापति शिवाचार्य ब्राह्मण थे किन्तु शूद्र आचार्य मरे ज्ञानसम्बन्ध के शिष्य हो जाने के कारण जाति से बहिष्कृत कर दिये गये । ये अपने सम्प्रदाय के प्रकाण्ड धर्मविज्ञानी थे। इन्होंने आठ प्रामाणिक सिद्धान्त ग्रन्थों की रचना की जिनमें से संकल्प - निराकरण भी एक है । ताम्रपात्रं सङ्कल्पसूर्योदय- श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के आचार्य वेदान्तदेशिक द्वारा लिखित एक ग्रन्थ यह रूपकात्मक नाटक है तथा बहुत प्रसिद्ध और लोकप्रिय है। वेदान्तदेशिक माधवाचार्य के मित्रों में थे। माधव ने 'सर्वदर्शनसंग्रह' में इनका उल्लेख किया है । इस ग्रन्थ का रचनाकाल चौदहवीं शती का उत्तरार्द्ध है । सङ्किशा — उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद जिले में पखना स्टेशन से प्रायः सात मील काली नदी के तट पर स्थित बौद्धों का धर्मस्थान इसका प्राचीन नाम संकाश्य है। कहते हैं, बुद्ध भगवान् स्वर्ग से उतरकर पृथ्वी पर यहीं आये थे । जैन भी इसे अपना तीर्थ मानते हैं तेरहवें तीर्थङ्कर विमलनाथजी का यह 'केवलज्ञानस्थान' माना जाता है । वर्तमान सा एक ऊंचे टीले पर बसा हुआ छोटा सा गाँव है। टीला दूर तक फैला हुआ है और किला कहलाता है। किले के भीतर ईंटों के ढेर पर बिसहरी देवी का मन्दिर है। पास ही अशोकस्तम्भ का शीर्ष है जिस पर हाथी की मूर्ति निर्मित है। सङ्कीर्तन -- सम्यक् प्रकार से देवता के नाम का उच्चारण अथवा उसके गुणादि का कथन । कीर्तन नवधा भक्ति का एक प्रकार है: Jain Education International सङ्कल्प- निराकरण सतनामी 'स्मरणं कीर्तनं विष्णोः वन्दनं पादसेवनम् ।' इसी का विकसित रूप संकीर्तन है। भागवत (११.५ ) में संकीर्तन का उल्लेख इस प्रकार है : यज्ञः संकीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः । पुराणों में संकीर्तन का बड़ा माहात्म्य वर्णित है। बृहन्नारदीय पुराण के अनुसार : संकीर्तन श्रुत्वा ये च नृत्यन्ति मानवाः । तेषां पादरजस्पर्शात् सद्यः पूता वसुंधरा ॥ [ संकीर्तन की ध्वनि सुनकर जो मानव नाच उठते है, उनके पदरज के स्पर्शमात्र से वसुंधरा तुरन्त पवित्र हो जाती है । ] सङ्क्रान्ति-सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना । द्वादश नक्षत्र राशियों के अनुसार द्वादश ही संक्रान्तियाँ हैं। विभिन्न संक्रान्तियाँ विभिन्न व्यक्तियों के लिए शुभा शुभ फल देनेवाली होती हैं। संक्रान्तियों के अवसर पर विभिन्न धार्मिक कृत्यों का विधान पाया जाता है। स्नान और दान का विशेष महत्त्व बतलाया गया है । सज्जा एक भावात्मक देवता सूर्यपत्नी को संज्ञा कहते हैं। मार्कण्डेयपुराण ( ७७.१) में कथन है मार्तण्डस्य रवेर्भार्या तनया विश्वकर्मणः । संज्ञा नाम महाभागा तस्यां भानुरजीजनत् ॥ विशेष विवरण के लिए उपर्युक्त पुराण का सम्बद्ध भाग देखिए । सतनामी - कबीरदास से प्रभावित जिन अनेक निर्गुणवादी सम्प्रदायों का उदय हुआ उनमें सतनामी सम्प्रदाय भी है । इसका प्रवर्तक कौन था और किस प्रकार इसका उदय हुआ, यह बतलाना कठिन है। अनुमानतः १६०० ई० के लगभग इसका उदय हुआ। इसका नाम सतनामी इसलिए पड़ा कि इसमें 'सत्य नाम' ( वास्तविक ईश्वर के नाम ) की उपासना पर जोर दिया जाता है । यह कबीर की नामोपासना से मिलता-जुलता है, जो उनके प्रभाव को स्पष्ट करता है | १६७२ ई० के लगभग सबसे पहला इसका उल्लेख पाया जाता है । औरंगजेब के शासनकाल में दिल्ली से दक्षिण-पश्चिम ७५ मील दूर नारनौल नामक स्थान में एक साधारण सी बात पर सतनामियों और शासन में झगड़ा हो गया । इस पर सतनामियों ने विद्रोह किया और वे बड़ी संख्या में मारे गये। उस समय का सतनामियों का कोई समसामयिक ग्रन्थ नहीं पाया जाता। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy