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________________ सगुणोपासना-सङ्कल्प ६४७ लगाकर भस्म होने के लिए उस पर चढ़ने जा रही थी। और्व भार्गव ( वसिष्ठ ) ने दया करके उसको सती होने से बचाया । रानी ने उस वन में अग्नि के समान प्रोज्ज्वल गर्भ की सेवा की। तपोबल से गर (विष ) के साथ बालक का जन्म हुआ इसलिए वह सगर कहलाया। वह अत्यन्त सुन्दर बालक था। और्व भार्गव ने उसके जातकर्म आदि संस्कार करके वेदों और शस्त्रास्त्र की शिक्षा दी। देवताओं के लिए भी दुःसह महाघोर आग्नेय अस्त्र उसको प्रदान किया । सगर ने उस बल से समन्वित होकर तथा सैन्य बल से भी युक्त होकर तालजङ्ग हैहयों और अन्य रिपुओं को वश में कर लिया। मत्स्यपुराण के अनुसार सगर की दो भार्यायें थींप्रभा और भानुमती । दोनों ने और्व भार्गव की आराधना की। और्व ने दोनों को उत्तम वर प्रदान किया। एक को साठ सहस्र पुत्र तथा दूसरी को एक पुत्र उत्पन्न हुआ। यादवी प्रभा को साठ सहस्र पुत्र और भानुमती को असमंजस नामक वंशधर पुत्र हुआ। अश्वमेध यज्ञ में अश्व की खोज करते हुए प्रभा के साठ सहस्र पुत्र कपिल के शाप से दग्ध हो गये। असमंजस का पुत्र अंशुमान् प्रसिद्ध हुआ। उसका पुत्र दिलीप और दिलीप का भगीरथ विख्यात हुआ । उसने तप करके गङ्गा का पृथ्वी पर अवतरण कराया। इससे उसके शापदग्ध पितरों का उद्धार हुआ। सगोत्र, बान्धव, ज्ञाति, बन्धु और स्वजन को समान बतलाया गया है। किन्तु इनमें तारतम्य है। सङ्कर-भिन्न वर्ण के माता-पिता से उत्पन्न सन्तान । हिन्दू समाज मुख्यतः चार वर्णों में विभक्त है। विवाहसम्बन्ध प्रायः सवर्णों में ही होता आया है। कभी-कभी अनुलोम और प्रतिलोम विवाह भी होते थे । किन्तु प्राचीन व्यवस्था के अनुसार संतति पिता के वर्ण की मानी जाती थी। परन्तु आगे चलकर वर्णान्तर विवाह वजित और निषिद्ध होने लगे। इस प्रकार के विवाहों से उत्पन्न संतति मिश्र ( सङ्कर ) और निन्दनीय मानी जाने लगी। मनुस्मति में वर्णसङ्कर जातियों का विस्तार से वर्णन पाया जाता है। दे० 'वर्ण' । सङ्कर्षण-पाञ्चरात्र वैष्णव मत के अनुसार पाँचके व्यूह में से दूसरा व्यक्ति । व्यूह के सिद्धान्त के अनुसार वासुदेव से संकर्षण, संकर्षण से प्रद्यम्न, प्रद्युम्न से अनिरुद्ध और अनिरुद्ध से ब्रह्मा उत्पन्न हए। वासूदेव परमतत्त्व ( ब्रह्म ) हैं । संकर्षण कृति अथवा महत् है। यहीं से सृष्टि में क्रियात्मक कर्षण प्रारम्भ होता है । पाञ्चरात्र वैष्णव देवमण्डल में वासूदेव कृष्ण के साथ संकर्षण (बलराम ) भी पूजा के देवता हैं। दे० 'पाञ्चरात्र'। सङ्कल्प-किसी कर्म के लिए मन में निश्चय करना। भाव अथवा विधि में 'मेरे द्वारा यह कर्तव्य है' और निषेध में मेरे द्वारा यह अकर्तव्य है, ऐसा ज्ञानविशेष संकल्प कहा जाता है । कोई भी कर्म, विशेष कर धार्मिक कर्म, बिना संकल्प के नहीं करना चाहिए। भविष्य पुराण का कथन है : संकल्पेन विना राजन् यत्किञ्चित् कुरुते नरः । फलञ्चाल्पाल्पकं तस्य धर्मस्यार्द्धक्षयो भवेत् ॥ संकल्पमूलः कामो वै यज्ञाः संकल्पसम्भवाः । व्रता नियमधर्माश्च सर्वे संकल्पजाः स्मृताः ॥ [हे राजन् ! मनुष्य जो कुछ कर्म बिना संकल्प के करता है उसका अल्प से अल्प फल होता है; धर्म का आधा क्षय हो जाता है । काम का मूल संकल्प में है । यज्ञ संकल्प से ही उत्पन्न होते हैं। व्रत, नियम और धर्म सभी संकल्प से ही उत्पन्न होते है, ऐसा सुना गया है । ] संकल्प की वाक्यरचना विभिन्न कर्मों के लिए शास्त्रों में विभिन्न प्रकार से बतलायी गयी है। योगिनीतन्त्र सगुणोपासना-ब्रह्म के दो रूप है-निर्गुण और सगुण । निर्गुण अव्यक्त और केवल ज्ञानगम्य है। सगुण गुणों से संयुक्त होने के कारण सुगम और इन्द्रियगोचर है। श्रीमद्भगवद्गीता में यह प्रश्न किया गया है कि दोनों रूपों में से किसकी उपासना सरल है । उत्तर में कहा गया है कि निर्गुण अथवा अव्यक्त की उपासना क्लिष्ट (कठिन) है । सगुण की उपासना सरल है । सगुण उपासना में पहले प्रतीकों-प्रणव आदि की उपासना और आगे चलकर अवतारों की उपासना प्रचलित हई । गीता में कहा गया है कि वृष्णिलोगों में वासुदेव ( कृष्ण ) और रुद्रों में शङ्कर ( शिव ) 'मैं' हूँ। इस प्रकार वैष्णव और शैव सम्प्रदायों और उनके अनेक उपसम्प्रदायों में सगुणोपासना का प्रचार हुआ। सगोत्र-एक ही गोत्र में उत्पन्न व्यक्ति । अमरकोश में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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