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________________ शिव-शिवचतुर्दशीव्रत ६२९ महादेव, महेश्वर, ईशान आदि रुद्र के नाम मिलते हैं। मानी जाती है जिनमें लास्य और ताण्डव दोनों सम्मिलित शतपथ और कौषीतकि ब्राह्मण में रुद्र का एक विरुद हैं । दक्षिणामूर्ति के रूप में भी शिव की कल्पना हुई है। अशनि भी पाया जाता है। इन आठ विरुदों में से रुद्र, यह शिव के जगद्गुरुत्व का रूप है। इस रूप में ने शर्व, उग्र तथा अशनि शिव के घोर ( भयंकर ) रूप का व्याख्यान अथवा तर्क की मुद्रा में अंकित किये जाते हैं। प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी प्रकार भव, पशुपति, महादेव मूर्त रूप के अतिरिक्त अमूर्त अथवा प्रतीक रूप में भी शिव और ईशान उनके सौम्य ( सुन्दर ) रूप का । यजुर्वेद में की भावना होती है । इनके प्रतीक को लिङ्ग कहते हैं जो उनके माङ्गलिक विरुद शम्भु और शङ्कर का भी उनके निश्चल ज्ञान और तेज का प्रतिनिधित्व करता उल्लेख है। है। पुराणों में शिव के अनेक अवतारों का वर्णन शिव की पूजा का क्रमशः विकास कब से हुआ यह बत- है। लगता है कि विष्णु के अवतारों की पद्धति पर यह लाना कठिन है। किन्तु इतना निश्चित है कि ईसापूर्व में कल्पना की गयी है । प्रायः दुष्टों के विनाश तथा भक्तों की ही शैव सम्प्रदाय का उदय हो चुका था। पाणिनि ने परीक्षा आदि के लिए शिव अवतार धारण करते हैं । अष्टाध्यायी (४.१.११५) में शिव के उपासकों (शैवों) का शिव-पार्वती के विवाह की कथा संस्कृत साहित्य और उल्लेख किया है । पतञ्जलि ने महाभाष्य में रुद्र और शिव लोकसाहित्य में भी बहुत प्रचलित है। का उल्लेख किया है । महाभाष्य में यह भी कहा गया है कि शिव के भयङ्कर रूप की कल्पना भी पायी जाती है शिवभागवत अयःशूल ( लोहे का त्रिशूल ) और दण्ड जिसका सबन्ध उनके विध्वंसक रूप से है। वे श्मशान, अजिन धारण करते थे । पुराणों में (विशेषतः शव पुराणों रणक्षेत्र, चौराहों ( दुर्घटनास्थल ) में निवास करते हैं । में ) शिव का विस्तृत वर्णन और शिवतत्त्व का विवेचन मुण्डमाला धारण करते हैं। भूत, प्रेत और गणों से घिरे पाया जाता है । संस्कृत के शुद्ध साहित्य और अभिलेखों रहते हैं । वे स्वयं महाकाल (मृत्यु तथा उसके भी काल) में शिव की स्तुतियाँ भरी पड़ी हैं । हैं, जिसके द्वारा महाप्रलय घटित होता है । पुराणों और परवर्ती साहित्य में शिव की कल्पना इनका एक अर्धनारीश्वर रूप है, जिसमें शिव और योगिराज के रूप में की गयी है । उनका निवास स्थान शक्ति के युग्म आकार की कल्पना है । इसी प्रकार हरि-हर कैलास पर्वत है। व्याघ्रचर्म ( बाघम्बर ) पर वे बैठते रूप में शिव और विष्णु के समन्वित रूप का अङ्कन है। है, ध्यान में मग्न रहने हैं। वे अपने ध्यान और तपोबल शिव उपपुराण-उन्तीस उपपुराणों में से यह एक है । से जगत् को धारण करते हैं। उनके सिर पर जटाजूट स्पष्टतः इसका सम्बन्ध शैव सम्प्रदाय से है। है जिसमें द्वितीया का नवचन्द्र जटित है। इसी जटा से शिवकर्णामृत-अप्पय दीक्षित लिखित एक ग्रन्थ । इसमें जगत्पावनी गङ्गा प्रवाहित होती है। ललाट के मध्य में शिव की स्तुतियों का संग्रह है। उनका तीसरा नेत्र है जो अन्तर्दृष्टि और ज्ञान का प्रतीक शिवकाजी-सुदूर दक्षिण भारत का प्रसिद्ध तीर्थ । यहाँ है । यह प्रलयङ्कर भी है। इसी से शिव ने काम का दहन किया था। शिव का कण्ठ नीला है इसलिए वे नीलकण्ठ सर्वतीर्थ नामक विस्तृत सरोवर है । मुख्य मन्दिर काशीकहलाते हैं । समुद्र मन्थन से जो विष निकला था उसका विश्वनाथ का है। सरोवर के तट पर यात्री मुण्डन और पान करके उन्होंने विश्व को बचा लिया था। उनके श्राद्ध करते हैं । एकामेश्वर शिवकाञ्ची का मुख्य मन्दिर कण्ठ और भुजाओं में सर्प लिपटे रहते हैं। वे अपने सम्पूर्ण है। इस क्षेत्र के है। इस क्षेत्र के दूसरे विभाग में वैष्णवतीर्थ विष्णकाञ्ची शरीर पर भस्म और हाथ में त्रिशूल धारण करते हैं। स्थित है। उनके वामा में पार्वती विराजमान रहती है और उनके शिवचतुर्थी-भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को शिवचतुर्थी कहा सामने उनका वाहन नन्दी । वे अपने गणों से घिरे रहते जाता है । उस दिन स्नान, दान, उपवास तथा जप करने हैं । योगिराज के अतिरिक्त नटराज के रूप में भी शिव से सहस्र गुना पुण्य होता है । गणेश इसके देवता है। की कल्पना हई है। वे नाट्य और संगीत के भी अधि- शिवचतुर्दशीव्रत-मार्गशीर्ष की कृष्ण त्रयोदशी को एकभक्त ष्ठाता हैं, १०८ प्रकार के नाट्यों की उत्पत्ति शिव से पद्धति से आहार तथा शिवजी की प्रार्थना करनी चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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