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________________ वेदान्तदेशिक-वेदान्तसिद्धान्तमुक्तावली ६०५ वेदान्तसूत्रों को भाष्य के विना समझना बड़ा कठिन विद्वान् भी यह मानते हैं कि इसके सिद्धान्तों में सर्वत्र है। इसीलिए अनेक विद्वानों ने इस पर भाष्य प्रस्तुत ईश्वरतत्त्व विराजमान है। किये हैं। वे दो श्रेणियों में रखे जा सकते हैं : (१) जो वेदान्तपरिभाषा-धर्मराज अध्वरीन्द्र इस सुप्रसिद्ध ग्रन्थ के शङ्कराचार्य (७८८-८२० ई.) के मतानुगामी है एवं प्रणेता थे । यह अद्वैत सिद्धान्त का अत्यन्त उपयोगी जीवात्मा को ब्रह्मस्वरूप मानते हैं तथा एक अद्वैत तत्त्व को प्रकरण ग्रन्थ है। इसके ऊपर बहुत सी टीकाएँ हुई है स्वीकार करते हुए भौतिक जगत् को माया मात्र बतलाते और भिन्न भिन्न स्थानों से इसके अनेक संस्करण प्रकाहैं । (२) जो ब्रह्म को सगुण साकार मानते हैं, विश्व को शित हुए हैं । अद्वैत वेदान्त का रहस्य समझने के लिए न्यूनाधिक सत्य मानते हैं, जीवात्मा को ब्रह्म से भिन्न मानते इसका अध्ययन बहुत उपयोगी है। हैं । इस श्रेणी के प्रतिनिधि रामानुजाचार्य हैं जो ११०० वेदान्तपारिजातसौरभ-चार वैष्णव संप्रदायों के एक प्रधान ई० के लगभग हुए थे। ह्विटने ने इस प्रश्न पर विस्तृत आचार्य निम्बार्क का निर्विवाद रूप से एक ही दार्शनिक विवेचन किया है कि शङ्कर तथा रामानुज में से ग्रन्थ 'वेदान्तपारिजातसौरभ' प्राप्त है । यह वेदान्तसूत्र की कौन ब्रह्मसूत्र के समीप है। वह इस निष्कर्ष पर पहुँ- सक्षिप्त व्याख्या है। श्रीनिवासाचार्य ने इसका विस्तृत चता है कि ब्रह्मसूत्र की शिक्षाओं तथा रामानुज के मतों भाष्य 'वेदान्तकौस्तुभ' नाम से लिखा है तथा उस में अधिक सामीप्य है, अपेक्षाकृत शङ्कर के। दूसरी तरफ पर काश्मीरी केशवाचार्य ने प्रभा नामक प्रखर व्याख्या वह शङ्कर की शिक्षाओं को उपनिषदों की शिक्षा के लिखी है। समीप ठहराता है । इस तथ्य की कल्पना वह इस बात से वेदान्तप्रदीप-रामानुजाचार्य द्वारा विरचित एक ग्रन्थ । करता है कि सूत्रों की शिक्षा भगवद्गीता से कुछ सीमा । इसमें इन्होंने यादवप्रकाश के मत का खण्डन किया है। तक प्रभावित है। यादवप्रकाश अद्वैतवादी आचार्य थे जिनके पास प्रारम्भ जीवात्मा तथा ब्रह्म के सम्बन्ध को लेकर तीन सिद्धान्त में रामानुज ने शिक्षा पायी थी । किंवदन्ती है कि यादवजो परवर्ती भाज्यों में पाये जाते हैं, वे बादरायण के पूर्व प्रकाश आगे चलकर रामानुज के शिष्य हो गये। वर्ती आचार्यों द्वारा ही स्थापित हैं। आश्मरथ्य के मता वेदान्तरत्न-निम्बार्काचार्य द्वारा केवल दस पद्यों में सूत्र नुसार न तो आत्मा ब्रह्म से भिन्न है, न अभिन्न है; इस ___रूप से विरचित 'वेदान्तरत्न' के अन्य नाम 'वेदान्तकामसिद्धान्त को भेदाभेद की संज्ञा दी गयी है। औडुलोमि के धेनु', 'दशश्लोकी' एवं 'सिद्धान्तरत्न' भी हैं। अनुसार आत्मा ब्रह्म से बिल्कुल भिन्न है; उस समय तक वेदान्तरत्नमञ्जूषा--पुरुषोत्तमाचार्य विरचित वेदान्तरत्नजब तक कि यह मोक्ष प्राप्त कर उसमें विलीन नहीं होता। मञ्जूषा वेदान्तकामधेनु या दशश्लोकी का भाष्य है। इस मत को सत्यभेद या द्वैतवाद कहते हैं । काशकृत्स्न इसमें निम्बार्कीय द्वैताद्वैत मत की व्याख्या की गयी है। के मतानुसार आत्मा ब्रह्म से बिल्कुल अभिन्न है । इस वेदान्तविजय-दोद्दय भट्टाचार्य रामानुजदास कृत वेदान्तप्रकार वे अद्वैत मत के संस्थापक हैं। विजय, में रामानुजमत की पुष्टि की गयी है। वेदान्तदेशिक-एक प्रसिद्ध विशिष्टाद्वैती आचार्य । इनका वेदान्तसार-(१) सदानन्द योगीन्द्र द्वारा रचित (१६वीं शतो) अद्वैत वेदान्त का सुप्रचलित प्रकरण ग्रन्थ । यह सरल अन्य नाम था वेङ्कटनाथ (देखिए 'वेङ्कटनाथ वेदान्ताचार्य') । मीमांसादर्शन अनीश्वरवादी कहा जाता है, क्यों होने के साथ ही लोकप्रिय भी है। नृसिंह सरस्वती ने इसकी सुबोधिनी नामक टीका लिखी है। रामतीर्थ स्वामी ने कि इसने कहीं भी परमात्मा को स्वीकार नहीं किया है ।। भी इसकी टीका लिखी है । किन्तु मातों को इससे बाधा नहीं पड़ती एवं वे सभी उपनिषद्वणित ब्रह्म को स्वीकार करते हैं। वेदान्त (२) रामानुजाचार्य की प्रमुख कृतियों में एक प्रसिद्ध देशिक ने अपनी 'सेश्वरमीमांसा' (जो जैमिनीय मीमांसा- ग्रन्थ वेदान्तसार है। सूत्रों की व्याख्या है) में दर्शाया है कि मीमांसाचार्य कुमा- वेदान्तसिद्धान्तमुक्तावली-इस ग्रन्थ के रचयिता हैं रिल भद्र ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करते हैं तथा अन्य प्रकाशानन्द यति । इसकी विवेचनशैली बहुत युक्तियुक्त, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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