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________________ ६०४ वेदान्तकोमा निम्बार्क सम्प्रदाय के द्वितीय आचार्य श्रीनिवासकृत 'वेदान्त कौस्तुभ' भाष्य की व्याख्या, जिसके रचयिता केशव काश्मीरी भट्ट है। इनका समय सोलहवीं शताब्दी का आरम्भिक काल या केशव काश्मीरी जितने उच्च कोटि के दार्शनिक और दिग्विजयी विद्वान् थे उससे अधिक कृष्ण भगवान् के गम्भीर उपासक थे। वेदान्तजाह्नवी-सातवादी वैष्णव सिद्धान्त के अनुसार रची गयी वेदान्तसूत्र की एक टीका । इसके लेखक श्रीदेवाचार्य ने निम्बार्कमत का प्रतिपादन करते हुए प्रस्तुत ग्रन्थ में अर्द्धतवाद का खण्डन किया है। वेदान्ततस्वबोधनिम्बार्काचार्य विरचित ग्रन्थों में इसका नाम भी लिया जाता है । सम्भवतः इसके रचनाकार सम्प्रदाय के कोई परवर्ती आचार्य हैं । वेदान्ततस्वविवेक -भट्टोजिदीक्षित विरचित एक अद्वैतवेदान्त का ग्रन्थ । आचार्य दीक्षित सुप्रसिद्ध वैयाकरण होने के साथ ही मीमांसक और वेदान्ती भी थे। इन्होंने दो वेदान्तग्रन्थ लिखे हैं। इनमें वेदान्तकौस्तुभ तो प्रकाशित है, वेदान्ततत्वविवेक संभवतः अभी तक प्रकाशित नहीं है। वेदान्तदर्शन वह विद्या अथवा शास्त्र, जो वेद के अन्तिम अथवा चरम तत्त्व का विवेचन करता है, वेदान्तदर्शन कहलाता है । उपनिषदों के ज्ञान को एकत्र समन्वित करने के लिए महर्षि बादरायण ने 'ब्रह्मसूत्र' या 'वेदान्तसूत्र' लिखा। इसी को वेदान्तदर्शन कहा जाता है। उपनिषदों या वेदों के तत्वज्ञान को समन्वित करने वाली भगवदगीता भी है। कुछ लोगों के मत से वह स्वयं उपनिषद् है अतः ये तीनों वेदान्त के प्रस्थानत्रय कहे जाते हैं। इस प्रकार उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र और गीता इन तोनों को या इनमें से किसी एक को प्रधान मानकर चलने वाले दार्शनिकों के सिद्धान्त को वेदान्तदर्शन कहा जाता है । शंकर, भास्कर, रामानुज, निम्बार्क, मध्य, श्रीकण्ठ, श्रीपति, वल्लभ, विज्ञानभिक्षु और बलदेव 'ब्रह्मसूत्र' के प्रसिद्ध भाष्यकार हुए हैं। ― इन सभी भाष्यकारों ने ब्रह्मसूत्र की व्याख्या अपने अपने ढंग से की है । वेदान्तसूत्रों को बिना किसी भाष्य के समझना कठिन है । शङ्कर, निम्बार्क, रामानुज, मध्व एवं वल्लभ में से प्रत्येक को कुछ न कुछ लोग वेदान्त Jain Education International वेदान्तकौस्तुभप्रभा वेदान्तदर्शन सूत्र का सर्वश्रेष्ठ भाष्यकार कहते हैं। इनमें शाङ्कर भाष्य सबसे प्राचीन है । अतः प्रायः शंकर के दर्शन को ही बाद रायण का दर्शन माना जाता है। अपने देश तथा पाश्चात्य देशों में भी लोग शक्रूर के ही दर्शन को वेदान्तदर्शन मानते हैं । ब्रह्मसूत्र के सभी भाष्यकारों में इस बात पर मक्य है कि वेदान्त का मुख्य सिद्धान्त ब्रह्मवाद है और इसकी सुन्दर तथा पर्याप्त अभिव्यक्ति 'ब्रह्मसूत्र' के प्रथम चार सूत्रों या चतुःसूत्री में हो गयी है। (१) 'जयातो ब्रह्मजि ज्ञासा' (२) 'जम्माद्यस्य यतः (२) 'शास्त्रयोनित्वात्' और (४) ' तत्तु समन्वयात्', ये ही चार सूत्र हैं । इनका अर्थ है - ( १ ) वेदान्त समझने के लिए 'ब्रह्म की जिज्ञासा' होनी चाहिए । (२) ब्रह्म वह है जो जगत् का मूल स्रोत, आधार तथा लक्ष्य है । जगत् उसी से बनता है, उसी में स्थित है तथा उसी में इसका लय भी होगा । ( 3 ) ब्रह्म को शास्त्र से ही अर्थात् उपनिषदों (वेदवचनों से ही जाना जा सकता है। (४) उपनिषदों का समन्वय वेदान्त की शिक्षा से होता है, अन्य दर्शनों की शिक्षा से नहीं । ब्रह्म का स्वरूप ब्रह्म और जगत् का सम्बन्ध, ब्रह्म और जीव का सम्बन्ध केवल ज्ञान से मुक्ति या भक्ति-कर्मसमुच्चित ज्ञान से मुक्ति, जीवन्मुक्ति या विदेह मुक्ति या सद्योमुक्ति आदि वेदान्तियों के मतभेद के मुख्य विषय हैं। ब्रह्मसूत्र का दार्शनिक मत निम्नलिखित है-ब्रह्म एक है तथा निराकार (अकल) है वह श्रुतियों का स्रोत हैं तथा सर्वज्ञ है, उसे केवल शास्त्रों के द्वारा जाना जा सकता है, वह सृष्टि का उपादान एवं अन्तिम कारण है, वह इच्छारहित है तथा क्रियाहीन है। उसके दृश्य कार्य लीला हैं । विश्व का, जिसकी उसके द्वारा समय समय पर सृष्टि होती है, आदि व अन्त नहीं है । शास्त्र भी शाश्वत है । देवता हैं तथा वे वेदविहित यज्ञों में दिये गये पदार्थों से अपना भाग प्राप्त करते हैं। जीवात्मा भी वास्तव नित्य, ज्ञानमय एवं सर्वव्याप्त है । यह ब्रह्म का ही अंश है; यह ब्रह्म है। इसका व्यक्तित्व केवल दृष्टिभ्रान्ति है । यज्ञ मनुष्य को ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने में सहायता पहुँचाते हैं, मोक्ष केवल ज्ञान से ही प्राप्त होता है । ब्रह्म से कार्यों का फल प्राप्त होता है, और इसी कारण से पुनर्जन्म एवं उसी से मोक्ष भी मिलता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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