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________________ विद्या-विनयपत्रिका ५८९ मनाना चाहिए और अभिनेता तथा नर्तकों का सम्मान आचार्य को सुवर्ण दान कर स्वयं भोजन करना चाहिए। करना चाहिए। विद्यावाप्तिवत-माघ मास की कृष्ण प्रतिपदा को व्रत विद्या-दर्शन, धर्म और कला के अर्थों में 'विद्या' का आरम्भ कर एक मास तक उस का आयोजन करना प्रयोग होता है । दर्शन में विद्या का अर्थ है अध्यात्म चाहिए । इस अवसर पर तिलों से हयग्रीव की पूजा शास्त्र, अर्थात् आत्मज्ञान से सम्बन्ध रखने वाली विद्या । करनी चाहिए, तिलों से ही हवन करना चाहिए । प्रथम धर्म में विद्या का अर्थ है त्रयी (तीन वेद), धर्मशास्त्र तीन दिन उपवास रखना चाहिए । यह एक मास का व्रत अथवा सामाजिक शास्त्र । पौराणिक तथा तान्त्रिक धर्म में है। इससे व्रती विद्वान् हो जाता है । (विष्णुधर्म०) विद्या का प्रयोग महादेवी, दुर्गा अथवा शक्ति के मन्त्र अर्थ विद्यावत-किसी मास की द्वितीया को अक्षतों से एक वर्गामें होता है । कला के क्षेत्र में विद्या का प्रयोग अनेक कार आकृति बनाकर उसके केन्द्र में अष्ट दल कमल कलाओं और शिल्पों के अर्थ में किया जाता है। अंकित किया जाय, उसके चारों ओर कमलहस्ता लक्ष्मी अर्थशास्त्र में चार विद्याएँ बतलायी गयी है-(१) की, जिसकी आठ शक्तियाँ (सरस्वती, रति, मैत्री, विद्या आन्वीक्षिकी (तर्क अथवा दर्शन) (२) त्रयी (तीन वेद) आदि) भी विद्यमान रहें, आकृति बनायी जाय । आठ (३) वार्ता (आधुनिक अर्थशास्त्र) और (४) दण्डनीति शक्तियों को एक-एक पँखुड़ी पर अङ्कित करना चाहिए। (आधुनिक राजनीति)। मनुस्मृति (७.४३) ने एक और तब 'सरस्वत्यै नमः' कहते हुए उन्हें प्रमाण करना विद्या (आत्मविद्या) जोड़ दी है। याज्ञवल्क्य स्मृति में चाहिए। कुछ अन्य देवगण, जैसे चारों दिशाओं के चार विद्या के चौदह स्थान बतलाये गये है-चार वेद, छः दिक्पाल तथा उनके मध्य वाली दिशाओं के भी दिक्पालों वेदाङ्ग, पुराण, न्याय, मीमांसा और स्मृति । कोई-कोई की आकृतियाँ और चार गुरुओं (व्यास, क्रतु, मनु, दक्ष) चार उपवेदों को भी जोड़कर अठारह विद्यास्थान बतलाते तथा वसिष्ठादि की आकृतियाँ मण्डल में स्थापित की जाँय । हैं । इसी प्रकार कोई तेतीस और कोई चौसठ विद्याएँ भिन्न-भिन्न पुष्पों से इन सबकी पूजा करनी चाहिए । (कलाएँ) मानते है। सर्वप्रथम ईशोपनिषद् में 'विद्या' श्रीसूक्त के मंत्रों, पुरुषसूक्त के मंत्रों तथा विष्णु के का प्रयोग अध्यात्म विद्या के रूप में हुआ है : लिए कहे गये मंत्रों से इनका पूजन करना चाहिए । व्रतोविद्याञ्च अविद्याञ्च यस्तद् वेद उभयं सह । परान्त एक गौ, जलपूर्ण कलश तथा चावलों एवं तिलों अविद्यया मृत्यु तीर्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥ से परिपूर्ण अन्य पाँच पात्र अपने पुरोहित को दिये जाँय । [ जो विद्या (अध्यात्म) और अविद्या (भौतिक शास्त्र) (स्त्री व्रती द्वारा) पिसी हुई हल्दी तथा सुवर्ण किसी को साथ-साथ जानता है वह अविद्या से मृत्यु-संसार को सद्गृहस्थ को तथा भूखे को भोजन दिया जाय । व्रतकर्ता पारकर विद्या से अमृततत्त्व को प्राप्त करता है। अपने आचार्य से तथा आचार्य प्रतिमाओं के सम्मुख नागेश भट्ट ने इसी अर्थ में विद्या का प्रयोग किया विद्या देने की प्रार्थना करें। (गरुड०) है : “परमोत्तमपुरुषार्थसाधनीभूता विद्या ब्रह्मज्ञान- विधानसप्तमी-इसके सूर्य देवता हैं। व्रती को माघ शुक्ल स्वरूपा।" सप्तमी से व्रत का आरम्भ कर निम्नांकित बारह वस्तुओं विद्याप्रतिपद्वत-मास की प्रथम तिथि को यह व्रत करना में से केवल एक वस्तु का प्रति मास की सप्तमी को क्रमशः चाहिए । जो व्यक्ति धनार्थी या विद्यार्थी हो उसे धानों से आहार करना चाहिए : अर्क के पुष्यों का अग्रभाग, शुद्ध गौ एक वर्गाकार आकृति बनाकर भगवान् विष्णु तथा लक्ष्मी का गोबर, मरिच, जल, फल, मूल (रक्तिम), नक्त विधि, का एक सहस्र या उससे कम पूर्ण रूप से खिले हुए उपवास, एकभक्त, दुग्ध, पवन और घृत । कालविवेक, वर्षकमलों से तथा दूध या खीर से पूजन करना चाहिए। कृत्यकौमुदी आदि इस व्रत को रविव्रत से ( जो माघ सरस्वती की प्रतिमा उनके पार्श्व में विराजमान की जाय। में प्रथम रविवार के दिन होता है ) पृथक् मानते हैं। चन्द्रमा भी वहाँ विद्यमान रहे। उस दिन अपने गुरु विनयपत्रिका-रामचरितमानस के प्रणेता गोस्वामी का सम्मान करना चाहिए । उस दिन तथा द्वितीया को तुलसीदास द्वारा रचित यह ग्रन्थ मुख्यतः राम के प्रति उपवास करके विष्णु का पूजन करना चाहिए । तदुपरान्त और गौणतः अन्य देवताओं के प्रति की गयी स्तुतियों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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