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________________ ५८८ वाल्मीकि रामायण-दे० 'रामायण' । वासिष्ठ उपपुराण - उन्तीस प्रसिद्ध उपपुराणों में से एक वासिष्ठ उपपुराण भी है। वासन्तिक नवरात्र चैत्र शुक्ल के आरम्भ से नौ दिनों तक चलने वाला पर्व । इन नवरात्रों में भी शारदीय नवरात्रों के सदृश ही पूजन उत्सव होते हैं यह मुख्यतः शात पर्व है और इसमें शक्ति अथवा दुर्गा की पूजा होती है । परन्तु इसके साथ वैष्णव पर्व भी जुड़ गया है। अन्तिम दिन रामनवमी को रामजन्मोत्सव मंङ्गल-वाद्य, नाच-गान आदि के साथ मनाया जाता है । वासुदेव द्वादशी आषाढ़ शुक्ल द्वादशी। इसमें भगवान् वासुदेव के शरीरावयवों की, चरणों से मस्तक तक उनके विभिन्न नामों तथा व्यूहों का उच्चारण करते हुए पूजा करनी चाहिए। एक पात्र में वासुदेव की सुवर्णप्रतिमा रखकर उसका पूजन किया जाना चाहिए। जलपात्र दो वस्त्रों से आच्छादित होना चाहिए। पूजन के उपरान्त उसका दान कर देना चाहिए। यह व्रत नारद द्वारा वसुदेव तथा देवकी को सूचित किया गया था, इसको करने से व्रती पुत्र अथवा राज्य, यदि उसने खो दिया हो, प्राप्त कर लेता है । साथ ही वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है । विजया (दशमी) - ( १ ) आश्विन शुक्ल का अनुष्ठान विहित है। सूर्यास्त के समय, जबतारागण निकल रहे हों, उद्देश्यों की सिद्धि के लिए अत्यन्त माना गया है। दे० स्मृतिकौस्तुभ दशमी को इस व्रत थोड़ी देर बाद का समस्त सिद्धियों तथा पुनीत तथा महत्त्वपूर्ण ३५३ ॥ (२) दिन के पंद्रह मुहतों में से यह ग्यारह मुहूर्त है । दे० स्मृतिकौस्तुभ, ३५३ । विजया द्वादशी (१) इस व्रत में भाद्रपद शुक्ल एकादशी को संकल्प करना चाहिए और श्रवण नक्षत्र युक्त द्वादशी को उपवास । इस अवसर पर भगवान् विष्णु की सुवर्ण की प्रतिमा को पीताम्बर पहनाकर उनका अर्ध्यादि से पूजन करना चाहिए | रात्रि को जागरण का विधान है। दूसरे दिन सूर्योदय के समय प्रतिमा का दान करना चाहिए। (२) फाल्गुन कृष्ण या शुक्ल एकादशी अथवा द्वादशी यदि पुष्य नक्षत्र से युक्त हो तो वह विजया कहलाती है । (३) भाद्र शुक्ल एकादशी वा द्वादशी यदि बुधवार को पड़े तथा उस दिन श्रवण नक्षत्र हो तो वह भी विजया Jain Education International वाल्मीकीय रामायण- वितस्तापूजा है । शुक्ल पक्ष में व्रत करने से स्वर्गोपलब्धि तथा कृष्ण पक्ष में व्रत करने से पाप क्षय होते हैं। । विजया यह नाम कई तिथियों के लिए प्रयुक्त होता है। यथा यदि रविवार को सप्तमी और रोहिणी नक्षत्र हो तो वह विजया कहलाती है गरुडपुराण के अनुसार द्वादशी या एकादशी श्रवण नक्षत्र से संयुक्त हो तो वह विजया कहलाती है। 'वर्षकृत्यकौमुदी' के अनुसार यदि विजया सप्तमी को सूर्य हस्त नक्षत्र में हो तो वह महामहाविजया कहलाती है । शुक्ल पक्ष की एकादशी को यदि पुनर्वसु नक्षत्र हो तो वह विजया कहलाती है। आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी भी विजया कही जाती है। इस दिन क्षत्रिय राजा अपराजिता देवी, शमी वृक्ष और अस्त्र-शस्त्रों का पूजन एवं विजययात्रा करते हैं । विजयाव्रतइन्द्र के वाहन ऐरावत हाथी तथा उच्चैःश्रवा नामक अश्व की पूजा इस व्रत में की जाती है । उच्चैःश्रवा इन्द्र का वाहन है। यह पर्व विजया दशमी को क्षत्रियों द्वारा मनाया जाता है । विजयायज्ञससमी माघ शुक्ल सप्तमी को इस व्रत का अनुष्ठान होना चाहिए । इसके देवता सूर्य हैं । एक वर्षपर्यन्त इस व्रत का अनुष्ठान होता है । प्रति मास सूर्य के विभिन्न नामों को प्रयुक्त किया जाय । १२ ब्राह्मणों को सम्मानित किया जाय। व्रत के अन्त में सुवर्ण की सूर्यमूर्ति एवं सारथि तथा रथ की प्रतिमाएँ बनवाकर अपने आचार्य को दे देनी चाहिए। विज्ञान - अन्तःकरण की उस चेतना का नाम, जिसके द्वारा अपने व्यक्तित्व का बोध होता है । इसका अर्थ 'अहङ्कार' से कुछ मिलता-जुलता है। विज्ञानवाद दर्शन के उस सिद्धान्त का नाम, जो मानता है कि वस्तुसत्ता 'विज्ञानरूप' है । विज्ञान के अतिरिक्त जगत् का कोई अस्तित्व नहीं हैं । यह बौद्ध योगाचार मत से मिलता-जुलता है । - वितस्तापूजा - भाद्रपद की दशमी से सात दिनों तक वितस्ता जो नदी (आजकल झेलम कहलाती है) में ही स्नान, उसी का जल पीना, उसके पूजन तथा ध्यान में मग्न होना चाहिए। कश्मीर भूमि में वितस्ता भगवती सती (पार्वती) का ही अवतार है । वितस्ता तथा सिन्धु के संगम पर विशेष पूजा का विधान है। वितस्ता के सम्मान में उत्सव For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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