SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 581
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ललिताषष्ठी-लिङ्ग ५६७ शुक्ल तृतीया को ही भगवान् शिव ने गौरी के साथ वर्णन है। इस ग्रन्थ पर रामकृष्ण दीक्षित, सायण और विवाह किया था । मत्स्य पुराण (६०.११ ) के अनुसार अग्निस्वामी के अच्छे भाष्य हैं। सती का नाम ही ललिता है, क्योंकि अखिल ब्रह्माण्ड में वे लालदास-मेव जाति के अन्तर्गत लालदास नाम के एक सर्वोच्च तथा सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी है। ब्रह्माण्ड पुराण के अन्त निर्गुण उपासक सन्त जिला अलवर (राजस्थान) में हो (अध्याय ४४) में ललितासम्प्रदाय पर एक पृथक् विभाग गये हैं। इनकी मृत्यु १७०५ वि० में हुई। इनकी शिक्षाओं ही लिखा गया है। तथा पदों का संग्रह 'बानी' कहलाता है । इनसे ही लालललिताषष्ठी-यह व्रत अधिकांशतः महिलाओं के लिए है। दासी पंथ प्रचलित हुआ। लालदासी आचार्य अपने प्रारभाद्र शुक्ल षष्ठी को बाँस के पात्र में नदी की बालू लाकर म्भिक आचार्य के समान ही विवाहित होते हैं । इस सम्प्रउसके पाँच गोल-गोल लड्डू से बनाकर उनके ऊपर भिन्न- दाय की पूजा में केवल रामनाम का जप सम्मिलित है। भिन्न प्रकार के २८ या १०८ पुष्पों, फलों तथा भाँति- लालदासी पंथ कबीरदास की शिक्षाओं से प्रभावित जान भाँति के खाद्य पदार्थों से ललिता देवी की पूजा करनी पड़ता है। चाहिए। उस दिन अपनी सखियों के साथ महिला बिना लालदासी पंथ-दे० 'लालदास' । आँख बन्द किये जागरण करे तथा सप्तमी के दिन वह लालदेव-चौदहवीं शताब्दी में एक अध्यात्मज्ञानी वृद्धा, समस्त खाद्य किसी देवीभक्त को दे दिया जाय । तदनन्तर जिसका नाम लालदेद था, कश्मीर में हो गयी है। उसकी कन्याओं तथा पाँच या दस ब्राह्मण पत्नियों को भोजन सरल बानियाँ कश्मीर की सुखद घाटी में बहुलता से प्रयुक्त कराकर 'ललिता देवी प्रसीदतु में' मन्त्रोच्चारण करते होती है। कश्मीरी भाषा में उसके पद लोकप्रिय हैं। हुए उन्हें विदा कर दिया जाय। ग्रियर्सन ने उसके कुछ छन्दों का अंग्रेजी अनुवाद किया है। लवणदान-मार्गशीर्ष पूर्णिमा को यदि मृगशिरा नक्षत्र हो तब लावण्यगौरीव्रत-चैत्र शुक्ल पञ्चमी के दिनों इस व्रत का यह व्रत करना चाहिए । चन्द्रोदय के समय एक प्रस्थ भूमि अनुष्ठान होता है । पञ्चाङ्गानुसार यह व्रत तमिलनाडु में का (क्षार) लवण किसी पात्र में रखकर, जिसका केन्द्र अधिक प्रचलित है। सूवर्ण से युक्त हो, किसी ब्राह्मण को दान दे दिया जाय। लावण्यवत-कार्तिकी पूर्णिमा के उपरान्त प्रतिपदा को इस कृत्य से सौन्दर्य तथा सौभाग्य की उपलब्धि होती है। वस्त्र के टुकड़े पर प्रद्युम्न की आकृति बनवाकर अथवा लवणसंक्रान्तिव्रत-संक्रान्ति के दिन स्नान के उपरान्त उनकी मूर्ति बनवाकर उसका पूजन करना चाहिए। उस केसर के लेप से अष्टदल कमल की आकृति बनानी दिन नक्त विधि से आहार करना चाहिए । मार्गशीर्ष मास चाहिए। उसके मध्य में सूर्य की प्रतिमा का पूजन करना के प्रारम्भ होते ही तीन दिनों तक उपवास करना चाहिए चाहिए तथा उसके सम्मुख एक पात्र में लवण तथा गुड़ तथा प्रद्युम्न महाराज का पूजन करना चाहिए। हवन रखना चाहिए । बाद में वह पात्र लवणादि सहित दान में घृताहतियाँ दी जानी चाहिए । ब्राह्मणों को मुख्य रूप कर देना चाहिए। वर्ष भर यह कार्यवाही चलनी से लवण वाला भोजन कराना चाहिए । अन्त में एक प्रस्थ चाहिए । व्रत के अन्त में सुवर्ण की सूर्यप्रतिमा बनवाकर नमक, एक जोड़ा वस्त्र, सुवर्ण तथा काँसे का पात्र दान लवणपूर्ण पात्र तथा एक गौ सहित दान कर देना चाहिए। में देना विहित है। यह मासवत है, इसलिए एक मास तक यह संक्रान्तिव्रत है। चलना चाहिए। इससे सौन्दर्य तथा स्वर्ग की प्राप्ति लाट्यायनसूत्र-सामवेदीय दूसरा श्रौतसूत्र । यह कौथुमी होती है। शाखा के अन्तर्गत है। यह ग्रन्थ भी पञ्चविंश ब्राह्मण का ही लिङ्ग-प्रतीक अथवा चिह्न । अव्यक्त अथवा अमूर्त सत्ता अंग है । उसके बहुत से वाक्य इसमें आये हैं । इसके पहले का स्थूल प्रतीक ही लिङ्ग है। इसके माध्यम से अव्यक्त प्रपाठक में सोमयाग के साधारण नियम हैं। आठवें और सत्ता का ध्यान किया जाता है। महाभारत, शान्तिपर्व नवें अध्याय के कुछ अंश एकाह याग की प्रणाली पर है। के पाशुपत परिच्छेदों में शिवलिङ्ग के प्रति अति श्रद्धानवें अध्याय के शेषांश में कुछ दिवसों तक चलने वाली भक्ति प्रदर्शित की गयी है। किन्तु पूर्ववर्ती साहित्य में श्रेणी के यज्ञों का वर्णन है। दसवें अध्याय में सूत्रों का इसका उल्लेख नहीं मिलता। (ऋग्वेद में 'शिश्नदेवाः' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy