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________________ यतीन्द्रमतदीपिका-यम ५३३ दण्डी के अन्तर से पहचानते हैं । रामानुज के शिष्य यादव- यन्त्र-(१) नृसिंहपूर्वतापनीयोपनिषद् के द्वितीय खण्ड में प्रकाश ने विदण्डियों के कर्तव्य पर एक ग्रन्थ रचा है एक यन्त्र बनाने का निर्देश है, जो नृसिंह के मन्त्रराज जिसका नाम यतिधर्मसमुच्चय है । तथा तीन और वैष्णव मन्त्रों से बनता है । इस यन्त्र को यतीन्द्रमतदीपिका----श्रीवैष्णव मत का सिद्धान्तबोधक गले, भुजा या शिखा में पहनते हैं, जिससे शक्ति मिलती है। एक उपयोगी संक्षिप्तसार ग्रन्थ । इसमें अनेकों ऐसे (२) शाक्तों के द्वारा विभिन्न देवताओं के रहस्यात्मक सिद्धान्तों का प्रतिपादन हआ है जो आगमसंहिताओं में यन्त्रों की रचना, पूजाविधि और प्रयोग करना पर्याप्त नहीं प्राप्त होते । इसके रचयिता श्रीनिवास तथा रचना प्रचलित हैं । ये यन्त्र एवं मण्डल किसी धातुपत्र, भोजकाल १६५७ ई० के लगभग है। पत्र या मृत्तिकावेदी पर बनते हैं। साथ ही उन पर यदु--(१) यदू के वंश का भागवतधर्म से घनिष्ठ सम्बन्ध है। अनेकानेक मुद्राएँ अथवा अक्षरन्यास निर्मित किये जाते भागवत सम्प्रदाय का एक नाम सात्वत सम्प्रदाय मी है। हैं, फिर उनमें देवता का आवाहन एवं पूजन मुख्य मन्त्र के सात्वत नाम पड़ने का कारण है इसका यदुवंश से द्वारा होता है। सम्बन्धित होना। सर्वप्रथम इस धर्म का प्रचार यदुओं यम-यम के पूर्वजों एवं सम्बन्धियों का ज्ञान अनिश्चित में ही हुआ। कूर्मपुराण में कथा है कि यदुवंश के एक है। एक वर्णन के अनुसार ( ऋ० १०.१७.१-२) यम प्राचीन राजा सत्वत् ने, जो अंशु का पुत्र था, इस सम्प्रदाय एवं उनकी बहिन यमी विवस्वान् एवं सरण्यु की सन्तान की विशेष उन्नति की । इसके पुत्र सात्वत ने नारद से हैं । विवस्वान् स्पष्टतः प्रकाश का देवता है, चाहे उसे भागवत धर्म का उपदेश ग्रहण किया। इसी यदुवंशी उदीयमान सूर्य माने, प्रभापूर्ण आकाश माने या केवल भागवतधर्मप्रचारक के नाम पर इस सम्प्रदाय का नाम सूर्य मानें; अन्तर सामान्य पड़ता है । सरण्यु को सूर्या सात्वत पड़ा। अथवा उषा मान सकते हैं। विवस्वान् एवं सरण्यु कम(२) समाज की आवश्यकतानुसार अधिकांश ब्राह्मण और से-कम दो युगलों के माता-पिता अवश्य हैं । वे हैं यमक्षत्रिय अपने-अपने कार्य छोड़कर वैश्यों के गार्हस्थ्य धर्म का यमी तथा दो अश्विनौ । पालन करने लगे थे। इस प्रकार के कर्मसाकर्य के उदाहरण __ यम तथा यमी को चन्द्रमा एवं उषा के रूप में माना यदु थे। ये क्षत्रिय ययाति के पुत्र थे, किन्तु राज्याधिकार गया है, क्योंकि दोनों ही दिन व रात के गुणों में सम्मिलित न मिलने से पशुपालन आदि करने लगे। नन्द आदि हैं एवं दोनों की प्रेमकथा एक विवाह में समाप्त होती यादव ऐसे ही गोपाल थे। है ( ऋ० १०.८५.८-९)। इस आकाशीय, मानवीकृत (३) राजा ययाति ने छोटे पुत्र पुरु को राज्याधिकारी प्रेमव्यापार को हम उषःकालीन, पीले व हलके पड़ने बनाते हुए अपनी आज्ञा न मानने के कारण यदु आदि चार वाले चन्द्रमा में, जो अन्त में उषा में विलीन हो जाता पुत्रों को राज्यभ्रष्ट होने का शाप दिया था। विश्वास है, देख सकते हैं। किया जाता है, यदु आदि राजकुमार निर्वासित होकर आधुनिक दजला-फरात घाटी के देश पश्चिमेशिया चले एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार यम तथा यमी गये । आर्यावर्त से बाहर उस देश में इन्होंने अपना-अपना जलगन्धर्व एवं जल-अप्सरा की सन्तान हैं। राज्यतन्त्र स्थापित किया। वर्तमान जार्डन नदी और भारत-ईरानी काल से ही माना यम विवस्वान् का पुत्र जूडाई साम्राज्य यदुवंशी राज्यतन्त्र का ही पश्चाद्वर्ती जाता है, क्योंकि यह यिम, वीवन्ह्वन्त (पारसी देव) के अवशिष्ट स्मारक प्रतीत होता है। प्रभासपट्टन और पुत्र के तुल्य है। यम तथा यमी 'यिम' एवं 'यिमेह' से द्वारका बन्दरगाहों के मार्ग से यादवों का आवागमन मिलते-जुलते हैं। यमी एक ऋग्वेदीय मन्त्र (१०.१०) से वर्तमान आर्यावर्त में होता रहता था। उस देश में की सम्बन्धित है तथा 'यिमेह' लघु अवेस्ता (पारसी धर्मग्रन्थ) जा रही पुरातात्त्विक खोजों से इस तथ्य पर और अधिक के एक कथन 'बुन्दहिस' से । यम वैवस्वत (ऋ० १०.प्रकाश पड़ने की सम्भावना है। १४,१) का एक अन्य रूप मनु वैवस्वत (४.१) के रूप में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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