SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 528
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१४ माधवी-माध्वमत इन्होंने संन्यास आश्रम में भारती तीर्थ एवं शङ्करानन्द से मठ के शङ्कराचार्य की गद्दी पर सुशोभित हुए थे। इस भी शिक्षा ली। इनका स्थिति काल प्रायः चौदहवीं प्रकार सौ वर्ष से भी अधिक आ{ लाभकर उन्होंने अपनी शताब्दी था। कुछ लोगों का कहना है कि इनका जन्म सं० जीवन यात्रा समाप्त की । सिद्धान्ततः विद्यारण्य स्वामी १३२४ वि० में तुङ्गभद्रा नदी के तटवर्ती हाम्पी नगर में शङ्कराचार्य के अनुयायी थे । उनकी गगना अद्वैत सम्प्रदाय हुआ था। 'पराशरमाधव' नामक ग्रन्थ में इन्होंने अपना के प्रधान आचार्यों में होती है । परिचय देते हुए पिता का नान मायण, माता का श्रीमती माधवी-माधवी अथवा ब्रह्मरम्भा शिव की शक्ति का एवं दो भाइयों का नाम सायण व भोगनाथ बताया है। पर्याय है। ___ माधवाचार्य विजय नगर राज्य के संस्थापकों में थे। माधवीय धातुवृत्ति-विजयनगर राज्य के स्थापक माधवासं० १३९२ वि० के लगभग विजयनगर के सिंहासन पर चार्य द्वारा विरचित यह एक व्याकरण ग्रन्थ है । इसकी महाराज वीर बुक्क को अभिषिक्त कर वे उनके प्रधान रचना पाणिनीय धातुसूत्रों के अनुसार हुई है जिसमें अष्टामन्त्री बने। वे उच्चकोटि के राजनीतिज्ञ एवं प्रबन्धपटु ध्यायीस्थ संपूर्ण सूत्रों का संनियोजन धातु गणानुसार कर थे । उन्होंने ही यवन राज्यों को स्वायत्त कर विजयनगर दिया गया है। दे० 'माधवाचार्य। राज्य की सीमावृद्धि की। सुप्रसिद्ध विशिष्टाद्वैताचार्य माध्यन्दिनी-याज्ञवल्वय के पिता ( या गुरु ) का नाम वेदान्तदेशिकाचार्य उनके समकालीन और बालसखा थे । वाजसन था। इसलिए शुक्ल यजुर्वेद का नाम वाजसनेयी उनकी प्रतिभा सर्वतोमुखी थी। इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ संहिता हो गया । जाबालादि १५शिष्यों ने उनसे यह वेद निम्नांकित हैं। पढ़ा, जिनमें माध्यन्दिन मुख्य थे । वाजसनेयी संहिता की १. माधवीय धातुवृत्ति--यह व्याकरण ग्रन्थ है। माध्यन्दिनी शाखा ही आजकल प्रचलित है। २. जैमिनीय न्यायमाला और उसकी टीका 'विवरण' । __ सामवेद की भी एक माध्यन्दिन शाखा है । इस शाखा यह पूर्वमीमांसा सम्बन्धी ग्रन्थ है। का पुष्पमुनि द्वारा रचित सामप्रातिशाख्य उपलब्ध है। ३. पराशरमाधवीय-यह पराशर संहिता के ऊपर माध्यन्दिन और काण्व दोनों शाखाओं का शतपथ ही एक निबन्ध है। ब्राह्मण ग्रन्थ है । माध्यन्दिनी शाखा के शतपथ ब्राह्मण में ४. सर्वदर्शनसंग्रह-इसमें समस्त दर्शनों का पृथक्- चौदह काण्ड है । यह सौ अध्यायों में तथा अड़सठ प्रपाठकों पृथक् सार संगृहीत किया गया है। में विभक्त है । इसमें कुल मिलाकर चार सौ अड़तीस ५. विवरणप्रमेयसंग्रह । यह श्री पद्मपादाचार्यकृत पञ्चपा ब्राह्मणों पर विचार हुआ है। यह ब्राह्मण फिर सात दिका विवरण के ऊपर एक प्रमेय प्रधान निबन्ध है । हजार छ: सौ चौबीस कण्डिकाओं में विभक्त है। ६. सूत संहिता की टीका : स्कन्दपुराणान्तर्गत सुत माध्व-दे० 'मध्व' एवं 'मध्व सम्प्रदाय' । संहिता अद्वैत वेदान्त का निरूपण करती है। इस पर माध्व ( माध्वाचार्य)-दे० 'मध्व सम्प्रदाय' । माधवाचार्य ने विशद टीका लिखी है। माध्वमत-द्वैतवाद अथवा स्वतन्त्रास्वतन्त्रवाद के प्रमुख इसके अतिरिक्त ७. पञ्चदशी ८. अनुभूति प्रकाश आचार्य श्री मध्व हैं और इसी से द्वैतवाद का दूसरा नाम ९. अपरोक्षानुभूति की टीका १०. जीव सुक्तिविवेक माध्वमत है । सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार माध्व मत ११. ऐतरेयोपनिषद्दीपिका, १२. तैत्तिरीयोपनिषद्दीपिका के आदि गुरु ब्रह्मा हैं। ब्रह्मसूत्र में विशिष्टाद्वैतवाद, १३. छान्दोग्योपनिषद्दीपिका १४. वहदारण्यक वात्तिक भेदाभेदवाद और अद्वैतवाद का उल्लेख मिलता है, परन्तु सार १५. शङ्कर-दिग्विजय १६. 'कालमाधव' नामक ग्रन्थ द्वैतवाद का कोई उल्लेख नहीं मिलता। अवश्य ही विशिलिखकर माधवाचार्य ने प्रमाणित कर दिया कि वे एक ष्टाद्वैतवाद और भेदाभेदवाद भी द्वैतवाद के ही अन्तर्गत साथ ही कवि, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, तत्त्वनिष्ठ, महान् हैं । सांख्य मत भी द्वैतवाद ही है । परन्तु मध्वाचार्य का लोक संग्रही और पूर्ण त्यागी संन्यासी (विद्यारण्य नामक) स्वतन्त्रास्वतन्त्रवाद इनसे बिलकुल भिन्न है। सांख्य के थे । जैसे वे सफल राज्यसंस्थापक थे, वैसे ही संन्यासियों द्वैतवाद में दो पदार्थ है पुरुष और प्रकृति । ये दोनों नित्य में भी अग्रगण्य थे। संन्यास ग्रहण के पश्चात् वे शृंगेरी और सत्य हैं । माध्वमत मैं जीव और ब्रह्म नित्य और दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy