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________________ ५१० छेदनकासी के लिए ऐन्द्री महाशान्ति और अद्भुत विकारनिवारण और राज्य कामना के लिए माहेन्द्री महाशान्ति इत्यादि । महाशेफनग्न महाभारत में प्रथम बार लिङ्ग-पूजा का वर्णन प्राप्त होता है । अनेकानेक लिङ्गवाचक शब्दों के साथ (१३.१४,१५७) में 'महाशेफनग्न' का उल्लेख हुआ है । इसका अर्थ है 'नग्न लिङ्ग' । महाश्वेताप्रिय विधि रविवार को सूर्य ग्रहण होने पर यह व्रत आचरणीय है । एकभक्त, नक्त अथवा उपवास रखने के बाद महाश्वेता ( तथा सूर्य ) का पूजन करना चाहिए। इससे व्रती अत्युच्च स्थान प्राप्त कर लेता है। महाश्वेता मन्त्र है— ह्रीं ह्रीं सः ( कृत्य कल्पतरु, ९ तथा हेमाद्रि, २.५२१ ) । महाषष्ठी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य वृश्चिक राशि पर हो तथा भौमवार का दिन हो तो वह महाषष्ठी कहलाती हैं । व्रतो को पंचमी के दिन उपवास रखना चाहिए और षष्ठी को अग्निपूजन कर अग्निमहोत्सव का आयोजन करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए | इससे समस्त दुरितों का क्षय अवश्यम्भावी है । महाष्टमी - आश्विन शुक्ल अष्टमी (नवरात्र) को महाष्टमी कहते हैं । इस दिन दुर्गा का विशेष प्रकार से पूजन होता है । — महासप्तमी - इस व्रत के अनुसार माघ शुक्ल पञ्चमी को एकभक्त, षष्ठी को नक्त तथा सप्तमी को उपवास का विधान है । इस अवसर पर करवीर के पुष्पों तथा लाल चन्दन के लेप से सूर्य का पूजन करना चाहिए । वर्ष को माघ मास से चार-चार महीनों के तीन भागों में बांटा जाय तथा प्रत्येक भाग में भिन्न-भिन्न रंग के पुष्प, भिन्नभिन्न प्रकार का नैवेद्य तथा धूप प्रयुक्त किया जाय । व्रत के अन्त में रथ का दान विहित है । --- महासरस्वती तीन महाशक्तियों में से एक यं ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं । दे० "महालक्ष्मी' | महासंहिता वैष्णव संहिता का नाम, जो एक आगम है। मध्वाचार्य ने अपने ग्रन्थों में महासंहिता से अनेक उद्धरण लिए हैं । - महासिद्धसारतन्त्र - यह तन्त्र पर्याप्त पीछे का रचा जान पड़ता है। इसमें १९२ नामों की सूची है जो तीन विभागों में घंटी है। प्रत्येक में ६४ नाम है। विभाजनों के नाम Jain Education International महाशेफनग्न-महीवास है : विष्णुक्रान्त, रथक्रान्त एवं अश्वक्रान्त । सूची पर्याप्त नवीन है क्योंकि इसमें महानिर्वाणतन्त्र भी सम्मिलित है । १९२ नामों की सूची में वामकेश्वर की सूची से मिलते केवल १० नाम हैं । महास्वामी - सामसंहिता के एक भाष्यकार का नाम । महिम्नः स्तोत्र - शंकरजी की महिमा का उपस्थापक, उच्च कोटि का स्तोत्रग्रन्थ यह गन्धर्वराज पुष्पदन्त की रचना | कही जाती है। महिम्न स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक की शिव विष्णुपरक व्याख्या मधुसूदन सरस्वती ने रची है जो निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित है | महिष एक असुर का नाम, जो तमोगुण का प्रतीक है | दुर्गा अपनी शक्ति से इसी का छेदन करती हैं । सर्व प्रथम दुर्गा विषयक वर्णन महाभारत में प्राप्त होता है ( ४.६ ) जिसमें दुर्गा को महिषर्मादनी ( महिष को मारने वाली ) कहा गया है । --- महिषघ्नीपूजा - आश्विन शुक्ल अष्टमी को इसका अनुष्ठान होता है। इसमें दुर्गा देवी की पूजा होती है । महिषासुर का वध करने वाली दुर्गा जी की प्रतिमा को हरिद्रायुक्त जल में स्नान कराकर चन्दन तथा केसर का प्रलेप किया जाता है । कन्याओं तथा ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा प्रदान की जाती है और दीप प्रज्ज्वलित किये जाते हैं। इससे व्रती की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। महिषी - राजा की पत्नियों में से सर्वप्रथम पटरानी, अभिषिक्त महारानी परवर्ती साहित्य में इसका उल्लेख प्रचुर हुआ है । कदाचित् ऋग्वेद में भी यह शब्द इसी अर्थ के साथ व्यवहुत हुआ है । ५.२,२५.३७, ३) अश्वमेध आदि यज्ञों में राजा के साथ वही प्रमुख भाग लेती थी। महीदास - ब्राह्मण-ग्रन्थों के एक संकलनकर्ता । ऐतरेय आरण्यक के पाँच ग्रन्थ आजकल पाये जाते हैं । इनमें से हर एक का नाम आरण्यक है। दूसरे के उत्तरार्ध के शेष के चार परिच्छेद वेदान्त ग्रन्थों में गिने जाते हैं । इसलिए उनका नाम ऐतरेय उपनिषद् है । दूसरे और तीसरे भाग को महीदास ऐतरेय ने संकलित किया। विशाल के उर ( हृदय ) से और इतरा के गर्भ से महीदास का जन्म हुआ । माता के उपाधि पायी। नामानुसार उन्होंने नामानुसार उन्होंने ऐतरेय की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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