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________________ महावंत-महाशान्तिविधि प्रचार करते रहे। वे महावीर विरुद से प्रसिद्ध हुए। कर नैवेद्य अर्पित करने का विधान है। इसके उपरान्त बहत्तर वर्ष की अवस्था में महावीर ने अपना अन्तिम आचार्य तथा सपत्नीक ब्राह्मणों को सुवर्ण तथा वस्त्र दान उपदेश दिया और निर्वाण को प्राप्त हुए । करना चाहिए । सोलह वर्षों तक उपवास, नक्त, अयाचित उनका निर्वाण कार्तिक कृष्ण अमावस्या का मल्लगण विधियों से थोड़े बहुत परिवर्तनों के साथ इस व्रत का की दूसरी राजधानी पावा (कुशीनगर से १२ मील दूर आचरण किया जाना चाहिए। इससे दीर्घायु, सौन्दर्य, देवरिया जिला में) में हआ। मल्लों ने उनके निर्वाण के सौभाग्य की प्राप्ति होती है चाहे व्रती स्त्री हो या पुरुष । उपलक्ष्य में दीपमालिका जलायी। पावा जैनों का पवित्र (४) इस व्रत के अनुसार प्रति पूर्णमासी को उपवास तीर्थस्थान है। पटना जिले की पावा न गरी कल्पित है। तथा हरि का सकल (सावयव, साकार) ब्रह्म के रूप में पटना (पाटलिपुत्र) मगधसाम्राज्य की राजधानी थी। पूजन विहित है तथा अमावस्या को (निराकार, निखयव) इस जिले में मल्लगण (अथवा किसी भी गण) का होना ब्रह्म का पूजन होता है। यह व्रत एक वर्षपर्यन्त चलता असंभव था। ऐसा लगता है कि जब मूल पावा को मुस- है। व्रती समस्त पापों से मुक्त होकर स्वर्ग प्राप्त करता लमानों ने भ्रष्ट कर दिया तब जैनियों ने पटना में दूसरी है। यदि यह व्रत १२ वर्षों तक किया जाय तो व्रती विष्णु पावापुरी कल्पित कर ली । दे० 'वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ'। लोक को प्राप्त होता है। दे० विष्णुधर्म ०३.१९८,१-७ । (२) हनुमान का एक नाम । भगवान् राम के सहायक (५) कृष्ण तथा शुक्ल पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी और सेनानायक के रूप में इनकी रामायणान्तर्गत कथा को नक्त विधि से आहार करते हुए शिव जी का पूजन से हिन्दू मात्र सुपरिचित है । वीरतापूर्ण कृतियों के कारण करना चाहिए । यह व्रत एक वर्ष तक चलता है। इससे ही इनका नाम 'महावीर' पड़ा। इनकी पूजा उत्तरभारत में सर्वोत्तम सिद्धि प्राप्त होती है। दे० हेमाद्रि २.३९८ प्रचलित है। रोट तथा मिठाई, पुष्पादि सहित इनको (लिङ्ग पुराण से)। चढ़ाते हैं । पशुबलि आदि इनकी पूजा में वजित है। दे० महाशक्ति-सृष्टि की उत्पादिका पालिका तथा संहारिका 'हनुमान' । महाशक्तियाँ तीन है-महासरस्वती, महालक्ष्मी और महावत-(१) इस व्रत के अनुसार माघ अथवा चैत्र में महाकाली । दे० 'महालक्ष्मी' । 'गडधेनु' का दान करना चाहिए तथा द्वितीया के दिन महाशान्ति विधि-अथर्ववेद के नक्षत्रकल्प में प्रथम शान्तिकेवल गड का आहार करना चाहिए। इससे गोलोक कृत्य कृत्तिकादि नक्षत्रों की पूजा और होम बतलाया गया की प्राप्ति होतो है । 'गुड़धेनु' के लिए देखिए मत्स्य है। उसके पश्चात् अमृत से लेकर अभयपर्यन्त महाशान्ति पुराण, ८२ । के निमित्तभेद से तीस प्रकार के कर्म बतलाये गये हैं, (२) चतुर्दशी अथवा शुक्लाष्टमी जब श्रवण नक्षत्र- यथा-दिव्य, अन्तरिक्ष और भूमिलोक के उत्पातों की अमत युक्त हों उस समय उपवास के साथ व्रत का आरम्भ नाम की महाशान्ति, गतायु के पुनजीवन के लिए वैश्वदेवी करना चाहिए । यह तिथिवत है। शिव इसके देवता हैं। महाशान्ति, अग्निमय निवृत्ति के लिए और सब तरह की यह व्रत राजाओं द्वारा आचरणीय है। कामना प्राप्ति के लिए आग्नेयी महाशान्ति, नक्षत्र और (३) कार्तिक की अमावस्या अथवा पूर्णिमा के दिन ग्रह से भयार्त्त रोगी के रोगमुक्त होने के लिए भार्गवी मनुष्य को नियमों के आचरण का व्रत लेना चाहिए। महाशान्ति, ब्रह्मवर्चस चाहने वाले के वस्त्रशयन और नक्तपद्धति से आहार करना चाहिए तथा धृतमिश्रित अग्निज्वलन के लिए ब्राह्मी महाशान्ति, राज्यश्री चाहने पायस खाना चाहिए । चन्दन तथा गन्ने के रस के प्रयोग वाले के लिए बार्हस्पत्य महाशान्ति, प्रजा, पशु और धन का भी इसमें विधान है। प्रतिपदा के दिन उपवास रखते लाभ के लिए प्राजावत्यमहाशान्ति, शुद्धि चाहने वालों हए आठ या सोलह शैव ब्राह्मणों को भोजनार्थ निमन्त्रित के लिए सावित्री महाशान्ति, छन्द और ब्रह्मवर्चस् चाहने करना चाहिए। शिव इसके देवता हैं। शिव जी की। वालों के लिए गायत्री महाशान्ति, सम्पत्ति चाहने वाले प्रतिमा को पञ्चगव्य, घृत, मधु तथा अन्याण्य वस्तुओं से और अभिचारक से अभिनयमाण व्यक्ति के लिए आंगिस्नान कराना चाहिए । अन्त में उष्ण जल से स्नान करा- रसी महाशान्ति, विजय, बल, पुष्टिकामी और परचक्रो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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